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रघुवरजसप्रकास तुक एक प्रत कोठा नव होवै । लिखतां पाखर कोठामें न दीसै । सूधी अोळां पाखर लेखैतौ अग्यारै होवै । नव कोठारै माहै ऊपरलौ नै हेठलौ विचाळा दोय कोठारा दोई आखर दोय वेळां वंच सौ गीत जाळीबंध सांणोर चित्रकाव्य कहीजै ।
अथ जाळीबंध गीत वेलियौ सांणौर उदाहरण
गीत
साखी रे भांण नसापत सारै, कीध महाजुध कीत सकाम । साच तकौ कज साधां सारत, राच महीप सु रांमण राम ॥ दासरथी सुखदाई सुंदर, नमै पगां सुर नर आनूप । नरकां मिट जन तारै नको, भाख पयोध प्रभाकर भूप ॥ पती-सीत भूतप परकासी, वासी सिव उर वास विसेस । आपी तसां लंक आसत अत, नरा सत्र हण नमौ नरेस ॥ कळ नावै नेडी कह 'किसन, आव थरु सुख आसत अाथ । दख नांके जैरै दन अदना, नाथ थयां समना रघुनाथ ॥२८४
२८३. सूधी-सीधी। प्रोळां-पंक्तियों। लेखै-नियमसे, हिसाबसे । अग्यारै-ग्यारह ।
ऊपरलौ-उपर्युक्त, ऊपरका। हेठलौ-नीचेका। बिचला-मध्यका। वंच-पढ़े जांय । २८४. साखी-साक्षी । भाग-सूर्य । नसापत-चंद्रमा। कीध-किया। तकौ-वह। कज
काम । सारत-सफल करता है । राच-लीन हो। महीप-राजा । दासरथीश्रीरामचंद्र भगवान । सुखदाई-सुख देने वाला । सुर-देवता । नको-कोई नहीं। भाखकह । पयोध-समुद्र । प्रभाकर-सूर्य, चन्द्रमा। पत-सीत (सीतापति)-श्रीरामचंद्र भगवान । वासी-निवास करने वाला। सिव (शिव)-महादेव । प्रापी-दी, प्रदानकी। तसा-हाथों। लंक-लंका। प्रासत-शक्ति, बल । अत-अति । सत्र-शत्रु । हरणनाश करने वाला । कळ-पाप, कलयुग। नेडी-निकट । प्राथ-धन-दौलत । दख-- दूख । जैरै-नाश करे । दन-दिन । अदना-बूरा, खराब । थयां-होने पर । समनाअनुकूल, प्रसन्न ।
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