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रघुवरजसप्रकास
[ ३११ यक तुक गुणतीसह अखिर, जांण वरण उपछंद । वरण व्रतरा अंत विच, कहियौं अगर कविंद ॥ २७५
प्ररथ सालूर गीत वरण उपछंद छै । तुक अक प्रत गुणतीस अखिर होवै । पै'ली दोय गुरु होवै । पछै चौबीस लघु होवै। पछै अंक सगण होवै। यौ ईं गीतको संचौ छै । ss IIIIIIII IIs प्रेक करण, छ दुजबर, ब्रेक सगण, यौ अक तुक प्रमाण, यूं पनरै तुकां होवै। अंक दूहा प्रत तुक च्यारका मोहरा मिळे , सावझड़ो छ । यो गीत वरण व्रतमें वरण छंदांमें सालूर छंद कह्यौ छै सौ देख लीज्यौ ।
अथ गीत सालूर उदाहरण
गीत माया मत भिद सम हण भव दुसतर । तरण मनव सुण सर समझौ ॥ सीतापत समर सुज अहनिस । सुतन लहण फळ सुमन सझौ ॥ लाखां छळ कपट झपट अणघट । लख ललच मुचत लत करण लजौ ॥ भूपाळ धनखधर म धर अडर जग । अवर करत तज सु हर भजौ ॥ २७६ ई प्रकार दुतीय सालूररा च्यार ही दूहा जांणणा अथ गीत भाख मात्रा छंद लछण
दही ले धुरहूं तुक सोळ लग, चवदह मत्त सवाय । सावझडौ तुक अंत लघु, भाख गीत यण भाय ॥ २७७
२७५. यक-एक। अगर-अगाड़ी, पहिले। कविद-कवि । यो-यह । ई-इस । संचौ
छंद रचनाका नियम । करण-दो गुरु मात्राका नाम । दुजबर-चार लघु मात्राका नाम। २७६. अहनिस-रातदिन । सुमन-देवता, श्रेष्ठ मन । अणघट-अपार । २७७. लग-तक, पर्यन्त । मत्त-मात्रा। यरण-इस । भाय-तरह, प्रकार ।
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