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________________ ३१० ] रघुवरजसप्रकास संत जण तरण चख क्रपा रुख साहरै । साह रे विरद भुजडंड सिघाळा ॥ वीस भुज भांजणा समर हथवाह रे । वाह रे राम अवधेस वाळा ॥ २७१ अथ गीत पंखाळौ लछण दहौ छोटा वडा सांणोर रौ, नेम नहीं नहचेण । निमंधे त्रिण दूहा निपट, तवै पंखाळी तेण ॥ २७२ अथ गीत पंखाळौ उदाहरण गीत दसरथ नप नंदण हर दुख दाळद, मिटण फंद जांमण मरण । कर आणंद वंद नित 'किसना', चंद रांम वाळा चरण । दीनानाथ अभै पद दानंख, भांनख अंतक समर भर । मांनख जनम सफळ कर मांगण, धांनखधर पद सीसधर ॥ सुरसर सुजळ नमळ संजोगी, दळ मळ अघ ओघी दुख दंद। साझ कमळ पद रांम असोगी, मन अलियळ भोगी मकरंद ॥२७३ अथ दुतीय वरण उपछंद गीत सालूर लछण दूहा धुर बे गुरु चौवीस लघु, अंत सगण तुक ओक । सावझड़ौ यम च्यार तुक, विध सालूर विवेक ॥ २७४ २७१. जण-भक्त। चख-नेत्र। साह-अापके । साह-धारण करता है। सिघाळा-वीर। बीस-भुज-रावण । भांजणा-संहार करने वाला । समर-युद्ध । हथवाह-प्रहार । वाह रे-धन्य है। २७२. नेम-नियम । नहचेण-निश्चय । निमंधे-रचे, बनाये । त्रिण-तीन । तवै-कहते हैं। २७३. नंदण-पुत्र। हर-मिटा । दाळद-कंगाली। फंद-बंधन, जाल । जांमण-जन्म । मरण-मृत्यु । मानख-मनुष्य । मांगण-याचक । धानखधर-धनुषधारी। सुरसरगंगा नदी। नमळ-निर्मल । अघ-पाप । श्रोधी-समूह । अलियळ-भौंरा। भोगी भोग करने वाला, रसास्वादन करने वाला। मकरंद-फूलोंका रस । २७४. यम-ऐसे। विध-प्रकार, तरह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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