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रघुवरजसप्रकास
[ ३०६ विखम तुक कहतां पै'ली तीजी नै सम तुक कहतां दूजी चौथो पै'लो तुकरौ अंत नै सम तुकरौ श्राद होय जठे स्यंघाविलोकण तरै होय, जिणनै मुकताग्रह गीत कहीजै ।
अथ गीत मुकताग्रह उदाहरण
गीत
सुतण दासरथ रूप लसवांन कौटक समर ।
समर जसवांन नूप सियासांमी ।। तवंतां नाम नसवान अघ भवतणा ।
भवतणा हिया वसवांन भांमी ।। चीत ऊदार दत कनक आपण चुरस ।
चुरस निज जनक कुळ आब चाड़ा ॥ धड़च दससीस खळ रहण हिकधारणा ।
धारणा धनख सर भुजा धाड़ा ॥ लोभियां क्रीत कज गंज समपण लछी ।
लछीवर सराहे त्रिहूं लोका ॥ खेध अह पंज विमुहा खड़े झाट खग ।
झाट खग थाट यर भंज झोका ॥
२७०. जठे-जहां। स्यंघाविलोकण-सिंहावलोकन । तरै-तरह । २७१. सुतण-पूत्र । लसवान-शोभायमान । कौटक-करोड़ों। समर-कामदेव । समर
युद्ध । जसवांन-यशपूर्ण, यशस्वी। सियासांमी-श्रीरामचंद्र । तवंतां-कहने पर । नसवांन-नाश । अघ-पाप । भवतणा-जन्मके, संसारके । भवतणा-महादेवके । हियाहृदय । वसवांन-निवास करने वाला। भांमी-न्यौछावर, बलैया। चीत ऊदारचित्त उदार, दातार। दत-दान । कनक-सुवर्ण, सोना । पापण-देनेको, देने वाला। चरस-चाहसे, इच्छासे, हर्ष, प्रसन्नता । चुरस-श्रेष्ठ । जनक-पिता । प्राब-कांति, दीप्ति । चाड़ा-चढ़ाने वाला । धड़च-संहार कर, मार कर । दससीस-रावण । हिकधारणा-एक ही तरह । धारणा-धारण करने वाला। धनख-धनुष । सर-तीर, बारण। धाड़ा-धन्य-धन्य । लोभियां-लोभ करने वाले। कज-लिये। गंज-पुज, समूह। समपण-देने को। लछी-लक्ष्मी। लछीवर-लक्ष्मीपति, विष्णु। सराहेप्रशंसा करते हैं , खेध-द्वष । प्रह-नाग, हाथी। पूज-समूह । विमहा-विमुख । झाट-प्रहार । खग-तलवार । थाट-समूह, दल। यर-शत्रु । झोका-धन्य-धन्य ।
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