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रघुवरजसप्रकास तूं भंजण तोटा अनम अंगोटा जुध यर जोटा जै वाणं । रिख गोतम नारी उपळ उधारी देह सुधारी देवांणं ॥ पय मिथुला पथ्थं साझ समथ्थं हण धनु हथ्थं पह पांणे । सिय परण सिधाये दुजपत आये गरब गमाये जग जाणे ॥
जग जाणै बळ जगतपत, कुळ हांणे दसकंध ।
सुख गिरबांण समपिया, आणे सिया उकंध ॥ आणे सिय उकंध जीपण जंग रूप अभंगं दासरथी। आकाय अनंत तारण संतं क्रीत सुमंतं वेद कथी । न भजै रघुनंदं दयासमंदं जे मतमंदं जांण जडा। गुण राघव गाणे ‘किसन' कहाणै विच प्रथमांणे भाग वडा ॥२६६
अथ गीत मुकताग्रह लछण
दही कह प्रहास सांणोर किव, अंत विखम सम ाद । तुक सिंघाविलोकण तिम, मुकताग्रह मुरजाद ॥ २७०
अरथ
प्रहास सांणोर कहौ तथा गरभित सांणोर कहौ जिण प्रहास सांणोररी
२६६. भंजण-नाश करने वाला। अनम-नहीं नमने या मूडनेका भाव । अंगोटा
अंगुष्ठ । यर-शत्र । जोटा-समूह । उपळ-पत्थर । उधारी-उद्धार किया। देवाणंदेवता। पय-चरण । पथ्थं-मार्ग । समथ्थं-समर्थ । हण-नाश कर । धनु-धनुष । हथ्थं-हाथ। पह-प्रभ । पांणे-शक्तिसे, बलसे । परण-विवाह कर। सिधायेप्रस्थान किया। दुजपत-परशराम । गरब-गर्व । गमाये-नाश किया। जगसंसार । बळ-शक्ति। जगतपत-ईश्वर, श्रीरामचंद्र भगवान । हांणे-नाश किया। दसकंध-रावण। गिरबाण-देवताओंको। समपिया-दिया। उकंध-उद्धरस्कंध । जीपण-जीतनेको। जंग-युद्ध । दासरथी-श्रीरामचन्द्र भगवान । प्राकाय-शक्ति, बल । अनंतं-अपार, ईश्वर, श्रीरामचंद्र । क्रीत-कीर्ति । रघुनंदं-श्रीरामचंद्र । दयासमंद-दयासागर । जे-वे, जो। मतमंद-मतिमंद, मूर्ख । विच-बीच । प्रथमाणे
पृथ्वी में, संसारमें। २७०. किव-कवि। मरजाद-मर्यादा।
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