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रघुवरजसप्रकास पूछ यूं अन कवि प्रसन, थाप मेर जिण ठांम। प्रथम मेर मत कवि परठ, रट कीरत रघुराम ॥ ६४
अथ मात्रा मेर विध।
___ कवित छप्प कर सम बे बे कोठ, अंत यक अंक भरीजै।
आद कोठ यक अंक, दुवौ तिण तर हर दीजै ।। ऊरध जुगळ फिर अंक, देह पैलां कोठां दख ।
विध मध कोठा भरण, लछ आखंत सुकवि लख ।। सिर अंक त्याग दछ अंक सौ, समिळ लेख अध कोठ सुज। कह मत मेर यण विध ‘किसन', तूं रट राघव आंन तज ।। ६५
१४. यू-इस प्रकार। अन-अन्य। प्रसन-प्रश्न । थाप-स्थापित कर। मेर-मेरु ।
ठांम-स्थान । परठ-रच । ६५. कोठ-कोठा। दुवौ-दूसरा। तिण-उस। तर-तल, नीचे । ऊरध-उर्ध्व । दख-कह।
विध-विधि। मध-मध्य । लछ-लक्षण। पाखंत-कहते हैं। समिळ-साथ । प्रध-नीचे। सूज-वह। प्रान-अन्य।
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