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रघुवरजसप्रकास
उदाहरण बरवै नंदा
दूही पह ज्यांरा चित लागा, रघुबर पाय । पुळ पुळमें त्यां पुरखां, थिर सुख थाय ॥ ११३
___ अथ चौटिया दूहा लछण
चौटियौ दूहौ दूहा पूरब अरध पर, अधक बार मत होय । उत्तरारध दस मत अधक, दुहौ चौटियौ सोय ॥ ११४
उदाहरण
चौटियौ दूहौ महाराजा रघुवंसमण, सुज रावण समथरा धनु सर पांणां धारै । वायक सत सीतावरण, नूप नायक रघुनाथ तं संतां तारै ॥११५
अथ दूहाकौ नाम काढ़ण विध
दूहा लघु गिण आध कर, ज्यां मझ घट कर एक । रहेस बाकी नाम रट, वीदग अघट विसेक ॥ ११६ ___ इति भ्रमरादिक तेवीस दूहा नांम करण विध संपूरण ।
छंद चूलियाला दूहा अध पर पंच मत, चूळियाळा सौ जांणसु । कविवर देह लियां फळ एह, दख बद जीहा बाखांण स रघुबर॥११७
११३. पह-प्रथम । ज्यांरा-जिनके । पाय-चरण । थिर-स्थिर, अटल । ११४. अधक-अधिक । सोय-वह । ११५. रघुवंसमण-रघुवंशमणि । धनु-धनुष । सर-बाण । पांणां-हाथों। ११६. वीदग-विदग्ध, कवि, पंडित । ११७. एह-यह । दख-कह । बद-वर्णन कर । जीहा-जिव्हा । बाखांण-वर्णन, यश ।
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