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रघुवरजस प्रकास
छंद निस्र रेगका
निस्र ेणी ।
सम तेरह धुर फेर दस, जांणौ रिख नारी तरगी हरी, परसत पग रेणी ॥ जे रांम जस दिवस निस, किव 'किसन' जपीजै । लाभ देह रसना समुख, पायांरौ लीजै ॥ ११८
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छंद चौबोला
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धुर मत्त सोळ वर चवदह घर, गुरु चौबेल अ सौ भज 'किसन' रांम सीतावर, संत तार ब्रद निगम सखै रावण कं ूभ मेघ खर रहचे, कथ सौ बेद पुराण कही । बगसी भूपां भूप बभीखण, सरणागत हित लंक सही ॥ ११६ छंद ककुभा
कळ धुर सोळ बार सौ ककुभा, उप चौबोलक कहावै । सुजै सौ सुभ छंद, जेण में गुण सीतावर गावै 11 जांमण मरण मरण फिर जांमण, जग नट गौटौ जांगो 1 सौ दुख मेट खै पद समर्पण, केसव नांम कहांणौ ॥ १२०
दूहौ
खट दुजवर कर प्रथम पद, अंत जगण गण आंण ।
दूजी तुक दुज सात घर, जगण सिखा सौ जांण ॥ १२१
११८. धुर - प्रथम । रिख ऋषि । रेणी-धूलि । रसना - जिह्वा ।
११६. सोळ - सोलह । श्रवर - अपर अन्य । निगम - वेद । सखे-साक्षी देता है । कुंभ- कुंभकर्ण,
रावका छोटा भाई । मेघ-मेघनाद, रावणका पुत्र । खर- एक राक्षसका नाम । रहवे - मार डाला, संहार किया । बगसी-बख्शिश कर दी । सरणागत-शरण में ग्राया हुआ । लंक -लंका ।
१२०. कळ - मात्रा । सोळ-सोलह । बार-बारह । सीतावर - श्रीरामचन्द्र भगवान गावेंवर्णन करें। जांमण-जन्म । मरण - मृत्यु, मौत | नट गौटौ-नट क्रीड़ा, ऐंद्रजालिक खेल | प्रखं- अक्षय । समपण- देने वाला । कहांणौ-कहा गया ।
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