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रघुवरजसप्रकास
छंद सिख
सर
धनुख सफत जन सरण,
रख कर सुख रट सु झट रांम । 'किसन' किव समर पल यक न कर
"
हर सुरण घर विरद भज सुख धांम ॥ १२२
छंद रस उल्लाला
पनरै तेरह मत्त पय, छंद उल्लाल पिछांणजै । रघुनाथ सुजस सौ छंद रच, बीदग मुख वाखांराजै ॥ १२३
रस उल्लारा भेद
दहा
रस उल्लाल तिथ तेर मत, छवीस सम पद स्यांम | स्यांमक रस दूहा सहित, मुण तै छप्पय नांम ॥ १२४ उलटौ रस उलाल उण, आाख वरंग उलाल । दाख त्रिदस फिर पंच दस, तुक बिहं वै पड़ताळ ॥ १२५ पनर पर मत दोय पय, कांम उलाल कहंत । यण विध छंद उलालरा, भेद पांच भावंत ॥ १२६
अथ माहा छंद लछरण
प्रथम त्रीये मत बार पढ़, अख पद बियै अठार |
चौथे पनरह मात रच, यम गाथा उच्चार ॥ १२७ सात चतुर कळ अंत गुरु, जगरण छठे थळ जोय ।
उत्तर दळ छट्ठ े सुथळ, दुज कै यक लघु होय ॥ १२८
१२३. बीदग - (सं० विदग्ध) पंडित, कवि |
१२४. तिथ - पन्द्रह |
१२५. त्रिदस - तेरह |
नोट- ग्रंथकर्ताने निम्नलिखित रस उल्लाला के पांच भेदोंके नाम दोहोंमें बतलाये हैं, उनके उदाहरण नहीं दिये । १. रस उल्लाला, २. स्यांम उल्लाला ३ छप्पय उल्लाला, ४. बरंग उल्लाला ५. कांम उल्लाला ।
* ग्रंथकर्ताने महाछंद शीर्षक देकर नीचे गाथा अर्थात् श्रार्या छन्दोंका विवरण दिया है ।
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