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________________ रघुवरजसप्रकास [ ७३ तीस समत पूरब अरध, उत्तर सत्ताईस । सत्तावन मता सरब, आखव नाम छवीस ।। १२६ अथ गाथा उदाहरण गिरिस गिरा गौ गौरी, हर गिर हिम हंस हास सिस हीरा । सुसरि सेस सुरेसं ए, स्रीरांम क्रत प्रारख्यं ॥ १३० अथ गाथा गुण दोस कथन छंद बेअखरी निज आखै किव किसन' निरूपण, सुणौ गाहा गुण दोस सुलछण । सात चतुरकळ अंत गुरु सज्ज, देह छठे थळ जगण तथा दुज ॥१३१ बांधव पूरब अरध एण बिध, यम हिज जांण जगण उत्तरारध । काय छठे थळ यक लघु कीजै, दुसट विखम थळ जगण न दीजै ॥१३२ मत्त सतावन स्रब गाथा मह, कळातीस पूरबा अरध कह । वीस सात कळ उतर अरध विच, रेणव प्रेम छंद गाथौ रच ॥१३३ पाय प्रथम पढ़ हंस गमण पर, कह गत दुवै पाय विध केहर । गज गत तीजै पाय गुणीजै, औण चवथ गथ सरप अखीजै ॥१३४ एक जगण जिण मांहे आवै, कुळवंती सौ गाहा कहावै । बे जगण परकीया बखांणी, जगण घणा तिण गनका जांणौ ॥१३५ जगण विनां सौ रांड गणीजै, किणी मांझ सौ गाहा न कीजै। १२६. पाखव-कह । छवीस-छब्बीस । १३१. निरूपण-निर्णय। थळ-स्थान । दुज-चार मात्रा । १३२. एण-इस । यम-ऐसे । हिज-ही। यक-एक । १३३. मत्त-मात्रा। मह-में। रेणव-कवि । गाथौ-गाथा । १३४. पाय-चरण । विध-विधि । प्रौण-चरण । चवथ-चतुर्थ । १३५. माहे-में। गाह-गाथा, गाहा । नोट-गाहा छंदमें जगरण । 5 । गण पाना अनिवार्य माना गया है। जिस गाथा छंदमें एक जगण होता है उस गाहा छंदको कुलवंती गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें दो जगरण हों उसको परकीया गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें जगरण अधिक आ जाते हैं उसे गणिका गाथा कहते हैं। जिस गाथा छंदमें जगण न हो उसे विधवा गाथा कहेंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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