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________________ रघुवरजसप्रकास [ ४६ अथ वीस मात्रा पवंगम छंद । ग्रंथांतरे चंद्रायणौ छंद दूहौ त्रे खट कळ लघु गुरु चरण, अंत मत्त इक वीस। चुरस छंद चंद्रायणी, आख सुजस अवधीस ॥ २६ छंद चंद्रायणौ स्यांम घटा तन रूप विराजत सांमळा । बेखौ दुपटा पीत छटा जिम बीजळा ॥ कट तट ओप निखंग कोट छिब कामकी। रूप अनुप सचूप यसी दुति रांमकी ॥ ३० तेवीस मात्रा छंद महादीप महदीप छंद तेरहै दस मत पय जांणौ । यण जोड़ सुजस रांम नूपत उर मझ्झ आणौ ।। जनपाळ स्री दयाळ सुलख जियगतजांमी । सरण सधार बिरधार हणूंमांन सांमी ।। ३१ छंद हीर त्रय खटकळ अंत रगण नाम छंद हीर है। सौ पसु कव धन्य पढ़त कीरत रघुबीर है ।। २६. ३-३ । खट-६ । चुरस-श्रेष्ठ ।। ३०. बेखौ-देखिए। छटा-दीप्ति। बीजळा-बिजली। कटतट-कटितल । प्रोप-शोभित । निखंग-तर्कश । सचूप-सुन्दर । यसी-ऐसी। दुति-द्युति । ३१. मझ-मध्य । जनपाळ-भक्तोंकी रक्षा करने वाले। जीयगतजमी-अन्तर्यामी। सरणसधार-शरण में आये हएकी रक्षा करने वाला। हणंमांन-हनुमान । सामी-स्वामी । ३२. पसु-पशु, मूर्ख । कव-कवि, विद्वान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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