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________________ ४८ ] रघुवरजसप्रकास आस्रय आय भभीखण आतुर । बेख ब्रवी जिण लंक सियाबर ।। एक घड़ी मझ दास उधारै । धांनुंखधार बडा वद धारै ।। सौ नित गाव किसन' सुभायक । नाथ अनाथ धणी रघुनायक ॥ २६ छंद रडु सप्तदस मात्रा दूहौ कीजै दूही प्रथम यक, सत्तरह मत्ता पाय । तिथ रिव तिथ सिव तिथ, सुपय रडु छंद कहाय ॥ २७ छंद ग्रंथां तरे चूडामरण नाम धारत कर सायक धनुख, त्रेभोयण सिरताज । भजियां जन कारक अभै, जै राघव माहराज ॥ राज भभीखण लाज राखण, सरणागत साधारण । धनंख सायक भुजांधारण, मह असुर खळ मारण ॥ जांनुकीवर मरम जांणंग, तेग अरेसां तायक। 'किसन' भज जन मान रखके, दांन अभै वरदायक ॥ २८ २६. प्रातुर-दुखी । बेख-देख । ब्रवी-इनायत की। मझ-मध्य । दास-भक्त। धांनुखधार धनुषधारी। वद-विरुद । सुभायक-सुरुचिकर । धणी-स्वामी । २७. तिथ-१५। रिव-१२ । सिव-११ । २८. भोयण-त्रिभुवन । साधारण-रक्षा करने वाला। मह-(महि) पृथ्वी। मरम-मर्म । जांणंग-जानने वाला। अरेसां-(अरि+ईस) शत्रु । तायक-नाश करने वाला। नोट-सप्तदस मात्राके रडु छंदका लक्षण जैसा ग्रंथकारने दिया है उसके अनुसार उदाहरण नहीं है, क्योंकि सत्रह मात्रा किसी भी चरणमें नहीं हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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