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रघुवरजसप्रकास
छंद पाद्धरी
अख मत्त सोळ यक जगण अंत |
पादरी छंद कवि जे राजाधिराज माराज ते ताज सीस आलम
'अरिहंत' भरत अग्रज
जांनुकी कंत
मतिवंत
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पढ़ंत ॥
राम |
तमांम ॥
हेस ।
जेस ॥
तन स्यांम घणा घण रूप ताय । पट पीत बरण तड़िता प्रभाय ॥ आजांणबाहु अद्वितीय अंग | जि प ब धनु कटि निखंग ॥ सीय बांग अंग मुख अग्र सेख । बजरंग पाय सेवत बिसेख 11 इण रूप ध्यान निज वध ईस । कर भजन 'किसन' निस दिन कवीस ॥ २५ छंद बै प्रख्य
गुरु लघु अनियंम सोळ मता गण । छंद बै आखरी सोय बिचच्छण ॥ दाटक रांम लाटक दंडण | हाटक कोट अधीस विहंडण ||
घणाघण
प्रभाय - चमक ।
२५. श्रालम-संसार । अरिहंत - शत्रुघ्न । श्रहेस - लक्ष्मण । मतिवंत - बुद्धिमान् । ( घनाघन ) बादल । तड़िता - बिजली । प्राजांणबाहु -प्राजानुबाहु | पण - (परिण) हाथ । सेख - लक्ष्मण । बजरंग - हनुमान । पाय - चरण । २६. अनियंम - नियम नहीं । बिचच्छण - विचक्षरण | दाटक - समर्थ । श्रालाटक- दुष्ट । दंडण
दंड देने वाला | हाटक- स्वर्ण । कोटगढ़ । श्रधीस-स्वामी । विहंडण - नष्ट करने
वाला ।
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