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रघुवरजसप्रकास सौड़स मात्रा छंद
दूहौ च्यार चतुकळ सोळमत, सगा अंत पय साज । सिंह बिलोकण छंद सौ, रट कीरत रघुराज ॥ २१
छंद सिंह विलोकरण धन धन हरि चाप निखंग धरी। धर सील सधर क्रत ऊंच करी ॥ करतार करां जग झोक जपै । जय क्रती जिकै खळ पाप खपै ॥ २२
छंद चरना कुलक सौ पदकूळ पय मत्त सोळे । अंतक सं निरभै हर अोळे ॥ जै कज हे किव राम जपीजै। जांण करंजुळ आयुख छीजै ॥ २३
छंद अरिल दौ लघु अंत पयं मत्त खोड़स। छंद अरिल्ल विना हर खोड़स ॥ केसव नाम विना अणभै कर। कौसळनंद जनं नरभै कर ॥ २४
२१. सौ-(सः) वह । २२. धन-धन्य । निखंग-(निषंग) तर्कश । सधर-द्रढ़, अटल । ऋत-कार्य। ऊंच-श्रेष्ठ । ___झोक-धन्य-धन्य । जयति-विजयी । जिकै-जिसके । खळ-दुष्ट । खपै-नाश होते हैं । २३. सौ-उसके। पदकूळ-चरनाकुल। अंतक-यमराज। हर-(हरि) ईश्वर । पोळ-प्रोट।
जै-जिस । कज-लिये । करंजुळ-हाथका जल । प्रायुख-पायु। छीज-नष्ट होती है। २४. प्रणभै-निर्भय । जनं-भक्त। नरभै-निर्भय ।
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