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________________ रघुवरजसप्रकास चतुरदस मात्रा छंद छंद हाकल 1 त्रै दुज गुर कळ चवद तठै जांणौ हाकळ छंद जठै 11 Jain Education International भव सागर तर रांम तै विण आंन उपाय तजौ ॥ १७ भजौ । छंद संपताल गुर अंत मत चवदह गिरौ । भल कंपताळी कवि भौ ॥ रघुनाथ जेण रिझावियौ 1 पद उरध तै कवि पाइयौ ॥ १८ पंचदस मात्रा छंद छंद जैकरी 11 कळ दह पंच जांण जैकरी | दुज मुरप्रिय तै गुरु धरी भज भज सीता राघव भई I दस सिर जेता अघ हर दई ॥ १६ छंद चौपई पद दस पंचह मत्त प्रमांण, जगण अंत चौपई सजांण । पायौ जै धन मानव पिंड, आखै राघव क्रीत अखंड ॥ २० १७. - तीन । दुज -४ मात्रा । तै विण- उसके बिना । प्रांत - अन्य । १८. भल-ठीक । रिभावियो - प्रसन्न किया । उरध-ऊर्ध्वं । पाइयौ प्राप्त किया । १६. दह-दस । दुज-४ मात्रा मुर-तीन प्रिय-दो मात्रा । जेता- विजयी । २०. पायौ - प्राप्त किया। जै-जो। पिंड शरीर । श्रखं- कह । क्रीत - कीर्ति । [ ४५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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