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रघुवरजसप्रकास
छंद आभीर जै पय सिव मत जांण । अंत पयोधर आंण ॥ छंद आभीर अछेह । रट रघुनाथ अरेह ॥ हर जस गावण हार । धन मांनुख तन धार ॥१४
बारै मात्रा छंद
- उद्धौर कळ भांण पाय कहत। उद्घोर जिण जगणंत ॥ रे किसन भजि सियरांम । धांनंख धर सुख धाम ॥१५
त्रयोदस मात्रा छंद
छंद अनांम तेरै मत्त गुर लघु अंत । किव छंद अनांम कहंत ॥ रट सीता नायक राम । करौ चित तणा सिध काम ॥१६
१४. जै-जिस । पय-चरण। सिव-ग्यारह। पयोधर-मध्यगुरुकी चार मात्राका नाम ।।।
अछेह-अखंड । अरेह-निष्कलंक । १५. भांण-(भानु) बारह । पाय-चरण । जगणंत-जिसके अंत में जगण हो । १६. किव-कवि ।
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