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________________ रघुवरजसप्रकास [ ४३ अथ नव मात्रा छंद ___ छंद रसकल नौ मात जैरै, गुरु अंतपै । रसकळ सूछंद, भज्जि कवसलैंद ॥११ अथ दस मात्रा छंद छंद दीपक मुण पाय दह मात, दीपक्क सुखदात । जीहा अढूजांम, संभार स्त्री राम ॥ १२ इग्यारे मात्रा छंद छंद रसिक चव लघु सिव मत चरण । वळ खट पय तिण वरण ॥ रसिक जिकण जग रटत । मुण रघुबर अघ मटत ॥ धनख धरण धुर धमळ । 'किसन' समर मुख कमळ ॥ १३ बिबुधेस-इंद्र। दीध-दिया। तास-उसने। क्रीत-कीर्ति । जास-जिसकी। हे मन ! तू इस संसारको दुःखका घर और सांसारिक नशेको बोझ समझ । देवताओंके स्वामी इन्द्रके वन्दनीय और करोड़ों सूर्योके समान तेजस्वी अयोध्याके स्वामी श्रीरामचंद्रजी, जिन्होंने तुझे यह शरीर दिया है उनका स्मरण एवं सदैव कीर्ति-गान कर । ११. नौ-नव, न। मात-मात्रा । जैर-जिसके। अंतपै-अंतमें। कवसलैंद-कौशलेन्द्र, श्री रामचंद्र। १२. पाय-चरण । दह-दस । जीहा-जिह्वा । अढूजाम-अष्टयाम । संभार-स्मरण कर । १३. चव-कह । सिव-ग्यारह । मत-मात्रा। वळ-फिर । तिण-उस । जिकण-जिसको। मटत-मिटते हैं। धनख धरण-धनुर्धारी । धुर-बोझ । धमळ-वहन करने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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