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________________ ४२ ] रघुवर जसप्रकास छंद कंता सात मात्रा कळ सत 'कंत', जिण जगणंत । रट रघुराय, थिर सुख थाय ॥ ६ हौ सात मत्तपद प्रत पड़े, सुगति छंद सौ था । आठ मत्त अंतह तगण, पगण छंद कहवाय ॥ ७ छंद सुगति Jain Education International भूप रघुबर, सझत धनु सर । जूझ मंडे, दैत दंडे ॥ ८ छंद पगरण प्रस्ट मात्रा राम महराज, करण जन काज । कोट रिव क्रत, देह दुतिवंत ॥ ६ छंद मधु-भार चव कळ जगांण, मधु भार जांण । भधि भूप, रवि कोट रूप || श्रीरामचंद्र, बिबुधेस बंद | तन दीघ तास, जपि क्रीत जास ॥ १० ६. कळ - मात्रा, संसार । सत-सात सत्य । जिण जगणंत - जिसके अन्त में जगण होता हो । जिसमें सारा जग विलीन होता हो । थिर - स्थिर । थाय - होता है । संसार में सत्य केवल ईश्वर है जिसमें ही जगत रामचन्द्रजीको रट जिससे तेरे सब सुख स्थिर हो जायें । ७. पद प्रत पड़े- प्रत्येक चरण में 1 विलीन होता | अतः हे मन ! तू ८. जूझ - युद्ध । मंडे - रचा। दैत- दैत्य | दंडे - दण्ड दिया । ६. अंत-क्रांति । दुतिवंत - दीप्तिमान् । १०. चव - चार, कह । कळ - मात्रा, दुःख । जगांण- जिसके अंत में जगरण हो, संसार । मधुभार - एक छंद का नाम ( मधु - नशा । भार - बोझ ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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