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________________ रघुवरजसप्रकास [ ४१ अथ मात्रा वत्ति वरणण दूहा मत्त व्रत्तमें सुकव मुण, मात्र प्रमाण मुकाम । आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम ।।१ मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार । मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार ॥ २ छंद चंद्रायणौ * लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै। सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै॥ वरण मत सम नहीं असम पद जांणाजै। बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै ॥ ३ ___अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद पंच मत, गमक सत। सीत बर, राम रर ॥४ ___ छंद बाम छ मात्रा छ मत 'बांम' समरि स्यांम। झठ धंध, मन म बंध ॥५ १. मुकाम-स्थान । आखिरां-अक्षरोंमें । ठांम-स्थान । २. हिक-एक । प्रह-शेषनाग । मुणी-कही। ३. लेखजै-समझिये । ४. सत-सत्य । रर-राम शब्दकी ध्वनि । ५ छ-६, है। मत-मात्रा, मति । बाम-एक छंदका नाम, स्त्री। स्यांम-स्वामी, ईश्वर । धंध-सांसारिक प्रपञ्च । म-मत । रे मूर्ख ! तेरी बुद्धि स्त्रीमें है । तू सांसारिक झूठे प्रपञ्चोंमें अपने मनको मत फंसा और ईश्वरका स्मरण कर । * एक मात्रासे २४ मात्रा तकके पद्यको छंद कहते हैं। २४.मात्रासे अधिक को उपछंद तथा छंद और उपछंदके मेलको दंडक छंद कहते हैं। मतान्तर से ३२ मात्राके छन्दको भी दंडक कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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