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रघुवरजसप्रकास धरण धनुस बांम पांण बांण दच्छ हाथ है। भंजण गढ़ लंक भूप गजण दस माथ है ॥ ३२
__ छंद रोला औयण मत चौवीस होय जिण रोळा आखत । भल कवि जोड़ग छंद मांझ, राघौ जस भाखत ॥ गैल औण रज परसत रीजै नारी गौतम । प्रतिपल 'किसना' रामचंद्र सौ भज पुरसोतम ॥ ३३
छंद बथुवा भव तेरह मत औरण, कोय उप दोहा भाखै । अख रोळा बथु ऊभै, त्रिविध आनंद बथु आखै । दस तेरह मत्त रुद्र रुद्र रुद्रह नव आवै। राय बिथु तिण नाम रुद्र दस अंन मत गावै॥ ३४
अथ छंद काव्य आद मत्त अगीयार, दुतीय पद तेर मात दख । काव्य छंद तिण कहत, अवध ईस्वर कीरत अख । जिग कोसिक रख जेण, असुर मारीच उडायो। मार सुबाह मदंध, प्रगट रघुबर जय पायौ ॥ ३५
३२. बांम-बायां। पांण-(पाणि) हाथ । दच्छ-दाहिना। भंजण-तोड़ने वाला । लंक
लंका। गंजण-पराजित करने वाला। दसमाथ-रावरण । ३३. प्रौयण-चरण । मत-मात्रा। पाखत-कहते हैं। भल-उत्तम, श्रेष्ठ। जोड़ग
रचना करने वाला। मांझ-मध्य। राघौ-श्री रामचंद्र भगवान । गैल-रास्ता ।
प्रौण-चरण । ३४. भव-ग्यारह । भाखै-कहते हैं। रुद्र-ग्यारह । ३५. पाद-पादि। अगीयार-ग्यारह। मात-मात्रा। दख-कह। प्रख-कह, वर्णन कर।
जिग-यज्ञ । कोसिक-विश्वामित्र। रख-रक्षा कर । जेण-जिस ।
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