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रघुवरजसप्रकास
दूहौ मत्त छंद 'किसनै' मुणै, निज कीरत रघुनंद। सुणौ सुकव अखं सकौ, अब मत्ता उप छंद ॥ ३६
___ इति मात्रा छंद संपूरण अथ मात्रा उप छंद वरणण
दही
जिण पय मंदाकिण जनम, अघ नासिणी अपार । जिण भजतां अघ जाणरौ, विसमय किसुं विचार ॥ ३७
तत्रादि हरि गीत छंद चव आद खटकळ दुकळ गुरु यक पाय मत अठ वीसयं । हरि गीत सौ जिण अंत लघु सौ राम गीत मती सयं ॥ बपु स्यामसुंदर मेघ रुचि फबि तड़ित पीत पटबरं । सुज बांम चाप निखंग कटि तट दच्छ कर भ्रांमत्त सरं ॥ ३८
छंद राम गीत दसमाथ भंज समाथ भुज रघुनाथ दीन दयाळ । गुह ग्राह ग्रीधक बंध तै गत व्रवण भाल विसाळ ॥ सुग्रीव निरबळ राखि सरणे सबळ बाळ संघार ।
पह जोय 'किसना' नाम परचौ तोय गिरवर तार ॥ ३१ ३७. पय-चरण । मंदाकिण-(मंदाकिनी) गंगा। अध-पाप । नासिणी-नाश करने वाली,
मिटाने वाली। विसमय-(विस्मय) आश्चर्य । किसू-कैसा । ३८. चव-कह । प्राद-(प्रादि) प्रथम। वपु-शरीर। रुचि-कांति। तड़ति-बिजली
बांम–बायां। चाप-धनुष । निखंग-तर्कश। वच्छ-दक्षिण । ३६. दसमाथ-रावण । समाथ-समर्थ । गत (गति) मोक्ष। व्रवण-देने वाला। बाळ
बालि नामक बंदर। परचौ-चमत्कार। तोय-पानी। गिरवर-पर्वत । नोट-हरि गीत और राम गीतमें यही अंतर है कि राम गीतमें अंतिम वर्ण ह्रस्व रहता है।
परन्तु उपर्युक्त राम गीत में छब्बीस मात्रा ही हैं।
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