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रघुवरजसप्रकास
जुधां टंकारिया धनख राघव जारिया दुसह दहकंध पाय वय जोर बुध रूप नूपता नयण लख छटा नाता
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अनाता ।
जनुकी विना तरणी अवर जिकांनं मुणी बेटी वहन काय माता ॥ देखतां छहं बिध 'सगर' 'हरचंद' दुवा निस सुभावै ।
"
सौ
अधिक
असरण सरण सीतारमण कमण
गीत छोटा सांणौर लछण
दूहा
कहजै गुरु मोहरा कठै, वण कठैक लघुवंत | सुज छोटौ सांगौर सौ, कवि मत ग्रंथ कहंत ॥ ६४ भेद च्यार जिगरा भणौ, द वेलियौ क्ख । कवी सोहगौ २ खुड़द ३ कह, वळ जांगड़ौ ४ विसक्ख ॥ ६५ अथ गीत मिस्र वेलिया लछण
रांम
पार
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ज तैं ।
जेहा ॥
प्रसिध
भूप गुण राज
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पावै ॥ ६३
समिळ वेलियो सोहगौ, सझ फिर खुड़द समेळ । मिस्र लियौ कवि मुौ, भळ जांगड़ौ न भेळ ॥ ६६
६३. टंकारिया - धनुषकी प्रत्यंचा चढ़ाई या प्रत्यंचाकी ध्वनि की । दुसह - शत्रु, दुष्ट । दहकंध - रावण | जेहा - जैसा । छटा-शोभा, सुन्दरता । जांनकी-जनक पुत्री, सीता । श्रवरअन्य दूसरी । जिकांनूं-जिनको । मुणी-कही । काय या प्रथवा । सगर - सूर्यवंशी हरचंद - सूर्यवंशी राजा हरिश्चंद्र । दुवा - दूसरा, वंशज । ग्रहनिसरातदिन । कमण - कौन पावै प्राप्त करता है ।
राजा सगर ।
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६४. कहजै - कहिए । मोहरा - छंदके द्वितीय तथा चतुर्थ चरण के अन्तिम शब्दों या अक्षरोंका
परस्पर मेल, तुकबंदी | कहंत - कहते हैं ।
६५. वळ- फिर, और
६६. समिळ - साथ | मुणे-कहता है । भळ-फिर । भेळ - मिला, मिश्रित कर ।
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