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________________ रघुवरजसप्रकास । १६६ वेलियौ १ । सोहणौ २ । खड़द ३। तीन ही गीत भेळा वणै जिण गीतरौ नांम मिस्र वेलियौ कहीजै । यां भेळौ जांगड़ारौ दूही वणै नहीं नै वणै तौ जातविरोध दोस कहीजै । यूं सारौ समझ लेणौ । अथ गीत मिस्र वेलियौ उदाहरण गीत बुडतो सरवर फील उबारे , गुणतै बेद उचारै गाथ । धना नाम दे सदना उधारे , नेक जनां तारे रघुनाथ ।। गणका अजामेळ सवरीगण , दुख अघ अोघ मिटाय दिया । किता अनाथ सुनाथ क्रपा कर , कोसळराज-कुंवार किया । सीता हरण भभीखण रिवसुत लख जटाय कोसिक मिथळेस । हेर हेर लज रखी हुलासा , धणियप कर दासां अवधेस ॥ रख जन अभै त्रास जम हरणा , सुज ऊबरणा जगत सहै । ६७. बतौ-डबता हा। सरवर-सरोवर, तालाब । फील (सं० पील)-हाथी। उबारे बचाया! धना-एक हरि-भक्तका नाम । नामदे-एक भक्तका नाम। सदन-घर । गणका-एक वेश्या जो ईश्वरकी परम भक्त थी । अजामेळ-अजामिल नामक एक कन्नौज निवासी ब्राह्मण जिसने आजीवन न तो कोई पुण्य कार्य किया और न ईश्वराधन । इसके पुत्रका नाम नारायण था। कहते हैं कि मत्युके समय इसने अपने पुत्रको नाम लेकर बलाया जो कि भगवानके नामका पर्याय था और इसीसे इसकी सदगति हो गई। सवरी-शबरी. भिल्लनी जो राम-भक्त थी। प्रध-पाप । अोघ-समूह । किता-कितने। भ भीखण-विभीषण । रिवसुत (रविसुत)-सुग्नीव । जटाय-जटायु नामक गिद्ध । कोसिकविश्वामित्र । मिथळेस-राजा जनक । धणियप-स्वामित्व, कृपा, महरबानी । त्रास-भय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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