________________
२०० ]
रघुवरजसप्रकास सं पी सरम चरण तो सरणा , करणानिध किव 'किसन' कहै ॥ ६७
गीत वेलिया सांणौर लछण
मुण धुर तुक अठार मत, बीजी पनरह बेख । तीजी सोळह चतुरथी, पनरह मता पेख ॥ ६८ सोळह पनरह अन दुहां, गुरु लघु अंत बखांण । कहै ऐम सुकवी सकळ, जिको वेलियौ जाण ॥ ६६
प्ररथ जिण गीतरै पैहली तुक मात्रा १८ होय, दूजी तुक मात्रा १५ होय, तीजी तुक मात्रा १६ होय, चौथी तुक मात्रा १५ होय । दूजा सारां दूहां मात्रा १६।१५।१६।१५। तुकके अंत पाद गुरु अंत लघु आवै, जिण गीतरौ नाम वलियौ सांणौर कहीजै।
अथ गीत वेलिया सांणौररौ उदाहरण
गीत ओयण जे रांम स्त्रीया नित अरचै , सुज चरण सिव ब्रहम सकाज । जग अघ हरण सुरसुरी जांमी , राज तणा चरणां रघुराज ।। धाय मुनेस सेस सिर धारै , निज सिर जिकां सुरेस नमाय ।
६७. करणानिध-करुणानिधि । किव-कवि । ६८. मुण-कह । धुर-प्रथम । अठार-अठारह । मत-मात्रा। बीजी-दूसरी । बेख-देख ।
तीजी-तीसरी। चतुरथी-चौथी। मता-मात्रा। पेख-देख । ६६. अन-अन्य । बखांण-कह । ७०. श्रोयण-चरण। स्रीया (श्री)-लक्ष्मी, सीता। अरचै-पूजा करती है। हरण-मिटाने
वाला। सुरसुरी-गंगा नदी। जांमो-पिता । मुनेस (मुनीश)-महर्षि । सुरेस-इन्द्र ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org