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________________ रघुवरजसप्रकास जोतसरुपता आगर पोत रूप भव सागर गायब अरच चींतव सुख मत छोडै नेहा Jain Education International जस , पाय || गेहां " मतमंद | जग दुख हरण सरण जग जेहा ऐहारांम चरण " अरव्यंद || नाथ अनाथ दासरथ नंदण " स्त्री रघुनाथ 'किसन' साधार | कदम पखी पखी ज्यां काळा " खी पुळवाळा आधार || ७० [ २०१ अथ चौथा सूहा सांणौरको लछण दूहौ धुर तुक मह ठार मत, चवद सोळ चवदेख | सोळ चवद लघु गुरु मोहर, जांण सोहगौ जेण ॥ ७१ अरथ धुर कहां पहली तुक मात्रा १८ अठारै होवे । दूजो तुक मात्रा १४ चवदै हो । तीजी तुक मात्रा १६ सोळं होत्रै । चौथी तुक मात्रा १४ चवदै हो । पछे दूजा दूहा मात्रा १६ सोळ १४ चवदै ईं क्रम होवै जींके प्राद लघु अंत गुरु तुकांत होवें जीं गीतकौ नांम सोहणी सांणौर कहै छ । ७०. जोतसरूपतणा - ज्योतिस्वरूपका । आगर-घर । पोत- नौका, नाव । भव-संसार | अरच - पूजा कर । चतव - स्मरण कर । नेहा - स्नेह । मतमंद (मतिमंद) - मूर्ख | हरणहरने वाला । जेहा - जैसा । ऐहा- ऐसा । अरव्यंद ( अरविंद ) - कमल । दासरथदसरथ । नंदण-- पुत्र । साधार-रक्षक, सहारा । पखी वह जिसका कोई पक्ष करने वाला हो । प्रपखी - वह जिसका कोई पक्ष करने वाला न हो । अबखी - विषम, कठिन | पुळ - समय । ७१. धुर - प्रथम । तुक-पद्यका चरण । मह में। श्रठार - अठारह । मत मात्रा । चवदचौदह | चव देण-चौदह से । मोहर-पद्यके द्वितीय और चतुर्थ चरणका परस्पर मेल । जेण - जिससे । दूजी - दूसरी । तीजी - तीसरी । पछे - पश्चात । दूजा - दूसरा । ईइस । जीके - जिसके । जीं - जिस । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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