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रघुवरजसप्रकास अथ सोहणा गीत उदाहरण
गीत पंचाळी बेर बधायौ पल्लव करतां टेर सिहाय करी । समरथ भीखम पैज साहियौ हाथ चरण स्थतणौ हरी ॥ तैं मुख कमळ सदांमा तंदुळ पाया बिलकुल भरे पुसी । बिदुरतणी भगती हित बाधा खाधा केळा छोत खुसी ॥ गोपी चित राचियो गोब्यंद बदावन नाचियो बळी । धरियौ पद चौरस गिरधारी गौरस कारण गळी गळी॥ समरथ विरुद लोक त्रहं सांमी पुणां भांमी समथ्थपणौ। जन सादवियौ अंतरजांमी घणनांमी आसनौ घणौ ॥ ७२ अथ पांचमा गीत पूणिया सांणौर नै जांगड़ा सांणौर लछण
दै मत्ता धुर आठ दस, बार सोळ मत बार । गिण तुकंत जिण दोय गुरु, नौ जांगड़ो उचार ॥ ७३
प्ररथ
जिण गीतरै पैहली तुक मात्रा अठारै होय । तुक दूजी मात्रा बारै होय । तुक तीजी मात्रा सोळ होय । तुक चौथी मात्रा बारै होय । पछै दूजा दूहां मात्रा तुक पैहली सोळह। तुक दूजी मात्रा बारै । तुक तीजी मात्रा सोळ । तुक चौथी मात्रा बारै । सोळ बारै ईं क्रमसू होय । तुकांतमें दोय गुरु आखिर आवै जी गीतको नाम पूणियौ सांणौर कहीजै नै यण पूणियानै जांगड़ौ पण कहै छ । ७२. पंचाळी-द्रोपदी। बेर-समय । बधायौ-बढ़ाया। पल्लव-चीर, अंचल । टेर-पुकार ।
सिहाय-सहायता। भीखम-भीष्मपितामह । पंज-प्रण । साहियौ-धारण किया । सदांमा-सुदामा । तंदुळ-चावल । पाया-भोजन किये, खाये । पुसी-पसर । हित-- लिये । खाधा-खाये। छोत-छिलका। रचियौ-रंग गया, लीन हया। गोब्यंद-गोविंद । बळी-फिर । गोरस-दूध, दही। कारण-लिये। गळी-बीथि । पुणां-कहता हूं । भांमी-न्यौछावर, बलैया । समथ्थपणौ-समर्थत्व । सादवियौ-पूकारा, दूखमें याद
किया। घणनामी-जिसके अनेक नाम हो । प्रासनौ-पाश्रय, सहारा । घणौ-बहुत, अधिक । ७३. दै-देते हैं। मत्ता-मात्रा! धर-प्रथम, प्रारंभमें। बार-बारह। सोळ-सोलह ।
मत-मात्रा । बार-बारह ।
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