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रघुवरजसप्रकास साज पांण चाप बांण खळां खांण घमंसांण । सुरांरांण भुजांपांण जै कियौ असंक ॥ ताप खाय दितांराय बंद आय पाय तास । लखै रंक ही अवंक मेट दीध लंक ॥ अोप अंग स्यांम रंगते सुचंग जै अन । पीतरंग नी सारंग भंग कौड़ पाप ॥ सूरवीर जनां भीर गज्जगीर पै सधीर । जळे पाप अणमाप जेण नाम जाप ॥ दुनी पाळ इंद्र ढाल बिरदाळ जै दयाळ । गुणी साथ सांमराथ रटै क्रीत गाथ ॥ नांम जेस करे खेस पटै सेस ‘किसनेस' । निराधार ज्यां अधार निमौ औधनाथ ॥ १७७
अथ गीत अट्ठा लछण छंद अरध नाराजरी, चौ तुक दूहां सचीत । लघु गुरु क्रम तुक बरण अठ, गिण तिण अट्ठौ गीत ॥ १७८
प्ररथ वरण छंद छै अठौ गीत । जिणमें अरधनाराच छंदरी तुक च्यारसू श्रेक दूही होय। पै'ली लघु पछै गुरु, इण क्रमसूं तुक अंक प्रत आखर पाठ होय । जिणरै च्यार ही तुकारौ तुकांत अक होय । सावझड़ी होय, जिणनै अट्ठौ गीत कहीजै । १७७. साज-धारण कर सज कर । पाण-हाथ । चाप-धनुष । खळां-राक्षसों। खांण-नाश
कर, नाश करनेको, नाश करने वाला। घमंसाण-युद्ध । सुरांरांण-इन्द्र। भुजांपांणभजाके प्रभावसे । जे-जिस । असक-निर्भय । ताप-भय, आतंक । दितांराय-दैत्यराज। पाय-चरण । तास-उसके। दीध-दी, दिया। पीतरंग-पीला रंग । जनांभक्तों । भीर-मदद, सहायता । गज्जगीर-युद्ध । पै-चरण । सधीर-धैर्य-युक्त, अटल । अणमाप-अपार, असीम । जेण-जिस । दुनी-संसार । पाळ-पालक । ढाल-रक्षक । बिरदाळ-विरुदधारी। गणी-कवि। साथ-समूह । सामराथ-समर्थ । औधनाथ
श्रीरामचन्द्र भगवान । १७८. चौ-चार ।
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