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________________ रघुवरजसप्रकास [ २५६ अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ लछण दूहा धुर तुक मत चौवीस धर, वळ दूजी अकवीस । ती चौवीसह चतुरथी, कळ अकवीस कवीस ॥ १७५ दख यम मता चव दूहां, अंत लघू तुक ओक । सोळ चवद अखिर सुक्रम, कह विडकंठ विमेक ॥ १७६ प्ररथ पै'ली तुक मात्रा चौवीस होय । दूजी तुक मात्रा अकवीस होय । तीजी तुक मात्रा चौवीस होय । चौथी तुक मात्रा अकवीस होय । यण क्रमसू च्यार ही दूहां मात्रा होय । अंत तुकरै अंक लघु होय । इण लेखे तौ विडकंठ गीत मात्रा छंद छै नै पै'ली तुक पाखर सोळे । दूजी तुक पाखर चवदै। तीजी तुक आखर सोळ अर चौथी तुक आखर चवदै होय । यो क्रम च्यार ही दवाळां होय । आखर गिणतीके लेखे विडकंठ वरणछंद छै । इण प्रकार विडकंठ गीत कहीजै । गणांको क्रम गीतको तुकांसू देख लीज्यौ। लछणका दूहा घणा होय जिणसूं न कह्या छै। कोई इण गीतरौ नाम वीरकंठ पिण कहै छै । अथ गीत विडकंठ तथा वीरकंठ उदाहरण गीत जै नरेस राघवेस आसुरेस जुधां जेस । के कवेस देस देस कीरती कहंत ॥ स्त्रीधराज राख लाज कीध काज संत साज । हेल सिंध रूप इंद विरदां वहंत ॥ १७५. वळ-फिर । अकवीस-इक्कीस । ती-तीसरी। चतुरथी (चतुर्थी)-चौथी। कळ मात्रा। कवीस-महाकवि, कवि । १७६. दख-कह । यम-ऐसे। चव-चार । सोळ-सोलह । चवद-चौदह । अखिर-अक्षर । विमेक-विवेक । यौ-यह । १७७. जै-जय । नरेस-राजा । राघवेस-श्री रामचन्द्र भगवान । प्रासुरेस-राक्षस, रावण । के-कई। कवेस (कवीस)-महाकवि । कीरती (कीर्ति)-यश। कहंत-कहते हैं। स्त्रीधराज-श्री विष्ण, श्री रामचन्द्र। कीध-किया। हेल-लहर । सिंध-समुद्र । इंदइन्द्र । बिरदां-बिरुदों। वहंत-धारण करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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