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रघुवरजसप्रकास
अथ गीत ग्रहरण (न) खेड़ी उदाहरण गीत करां धाड़ लागै रघौराज दत कीजतां । सरसतां रीझतां संत सुख साज ॥ लीजतां नखत्र-डर सरण हेकरण लहर । रीझतां दियौ लंका जिसौ राज ॥ सर धनंख धरण कर दहण दैतां सधर । दुख नरक त्रास हरण जनां जगदीस ॥ हरख रिण इंद्रतण नास कीधौ हठी । अरकतण कियौं केकंध गढ ईस ॥ तिकां सिर दया रुख होय हरि तौ तणी । किणी दिन न लागै जिकां आतंक || घणाघण छटा तन कति धरियां घणी । सह जनां संकट हरण धणी निरसंक | चरण असरण सरण है चतुर । होनिस संत जण करण आणंद || दूणदसहाथ हण गाथ राखण दूनी । नाथ 'किसनेस' कौसळतणा नंद ॥ १७४
१७४. करां-हाथों । धाड़ - धन्य ।
रधौराज-श्री रामचन्द्र ।
नखत्र-डर
दहण-नाश ।
जिसौ- जैसा । हरख - हर्ष
रिण - युद्ध |
( नखत्र - भै + डर - भीखण - भभीखरण ) - विभीषरण : सधर- दृढ़ । त्रास-भय, आतंक | जनां-भक्तों । इंद्रण ( इन्द्रतनय ) - बालि वानर । कीधौ किया। हठी हठ करने वाला, जिद्दी । अरकतण ( अतनय ) - सुग्रीव । कियौ - किया । केकंध - किष्किंधा। ईस-राजा तिकांउन, जिन । रुख - इच्छा । तौ तणी-तेरी । किणी-किसी । प्रातंक - डर, भय । घणाघण- बादल । छटा-कांति, दीप्ति, विजली । ऋत - कांति, दीप्ति । धरियांधारण किये हुए । घणी - बहुत । धणी - स्वामी। निरसंक- निशंक, निर्भय । श्रांणणचतुर ( चतुरानन) - ब्रह्मा । दूणदसहाथ - रावण । हण मार कर । गाथ- कीर्ति, यश । दुनी - दुनियां, संसार । नंद-पुत्र ।
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दत-दान ।
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