SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 298
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रघुवरजसप्रकास [ २७३ अथ गीत दीपक वेलियौ सांणोर लछण दूहा दीपक सोही वेलियौ, भेद अधिक तुक हेक । तीजी तुक व्है बेवड़ी, वद तुक पंच विवेक ॥ २०७ धुर उगणीस अठार धर, पनरह दुती पढंत । व्रती चवथी सोळ मत, पंच पनर पुणंत ॥ २०८ प्ररथ गीत दीपक नै गीत वेलियौ सांणोर अंक हौवै छै। यणांमें इतरौ भेद छ । वेलियासांणोररै तुक च्यार होवै छै। पै'ली तुक मात्रा अठारै तथा उगणीस होवै । दूजी तुक मात्रा पनरै हो । तीजी तुक मात्रा सोळ होवै । चौथी तुक मात्रा सोळे होवै । पांचमी तुक मात्रा पनरै होवै । इण भांत दीपकरै पांच तुकां दूहा एक प्रत होवै । दूजा दूहां मात्रा सोळे पनरै सोळ सोळ पनरै ईं प्रमाण होय । तुकांत लघु होय सौ गोत दीपक । वेलियारै च्यार तुक यौई फरक । इति दीपक लछण । अथ गीत दीपक उदाहरण गीत सुंदर तन स्यांम स्यांम वारद सम, कौटक भा रद काम सकांम । नायक सिया दासरथ नंदण, विमळ पाय सुरराजा वंदण । रीझवजै महराजा राम ॥ कमर निखंग पांण धनु सायक, सुखदायक संतां साधार । कीधां कहर माथदस कापे, अकण लहर लंक गढ आपे। आठ पहर जिण नाम उचार ॥ २०७. सोही-वही। बेवड़ी-दोहरी। वद वह। पंच-पांच । २०८ दूती-दूसरी। पढंत-पढ़ते हैं। ती-तीसरी । चवथी-चौथी। पुणंत-कहते हैं। पण परन्तु । इण भांत-इस प्रकार । योई-यही । २०६. वारद-बादल । सम-समान । कौटक-करोड़ । भा-हुए। दास रथ-दसरथ। नंदण पुत्र । विमळ-पवित्र । पाय-चरगा। सुरराजा-इन्द्र । रीझवजै-प्रसन्न कीजिए। निखंग-तर्कश। पाण-हाथ । धन-धनुष । सायक-तीर, बांण । सुखदायक-सुख देने वाला। साधार-रक्षक । कीधां-करने पर। कहर-कोप। माथदस-रावण । कापे-काट दिये, मारा। प्रापे-दे दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy