________________
२७४ ।
रघुवरजसप्रकास ते रज पाय तरी रिख तरणी, मझ बेदा बरणी भ्रहमेण । डहिया विरद वडा भुजडंडे, तीख करे मिथळापुर तंडे ।
जटधर चाप विहंडे जेण ।। जनक सुता मनरंजण जगपत, भंजण खळ रांवण भाराथ । सरणसधार काज जन सारण, 'किसन' अहौनिस गाव सकारण ।
नप रघुनाथ अनाथां नाथ ॥२०६ अथ गीत अहिबंध वरण छंद लछण
स
दूहा
रगण सगण अंतह गुरू, तुक खट यण बिध कीन । यगण रगण अंतह लघु, चौथी आठम चीन ॥ २१० अठाईस पूरब अरध, ऊतर अठाईस । प्रेम गीत अहिबंध अख, बरण छंद बरणीस ॥ २११
प्ररथ अहिबंध गीत बरण छंद छै, मात्रा छंद नहीं। तिणरै गण तथा तुक प्रत अखिरांरी गिणती छै । दूहा अंक प्रत तुक आठ पाठ होवै । तुक अंक प्रत प्रखर सात सात होवै। दूहा एक प्रत पाखर छपन होवै। सारा गीतरा दहा च्यार प्राखर दोयसौ चौबीस होवै। पै'ली तुक दूजी तोजी तुक रगण सगण अक गुरु सवाय होवै। यूंही तुक पांचमी छठी सातमी तुक रगण सगण श्रेक गुरु होवै । तुक चौथी और आठमी यगण रगण श्रेक लघु सवाय होवै। पाठ ही तुकां प्रत आखर सात सात होवै । तुक पै'ली दूजी तीजीरा तुकांत मिळ । तुक चौथी तुक अाठमीसू मिळे । यण प्रकार गीत अहिबंध कहीजै। जूं बंध हुवौ थकौ साप २०६. ते-उस । रज-धूलि । रिख-ऋषि । तरणी (तरुणी)-स्त्री। भ्रहमेण-ब्रह्मासे ।
डहिया-धारण किये। तीख-विशेषता। तडे-जोशपूर्ण आवाज की । जटधर-महादेव । विहंडे-नाश किया। मनरंजण-मनको प्रसन्न करने वाला। जगपत (जगतपति)ईश्वर, श्री रामचन्द्र । भंजण-नाश करने वाला। खळ-राक्षस । भाराथ-युद्ध । सरणसधार-शरणमें आए हुएकी रक्षा करने वाला। काज-कार्य । जन-भक्त ।
सारण-सफल करने वाला । प्रहौनिस-रात-दिन । गाव-स्मरण कर, गुणगान कर। २१०. यण-इस । विध-प्रकार । कीन-की, रची। २११. प्रख-कह । यूंही-ऐसे ही।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org