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________________ रघुवरजसप्रकास । २७५ कड़ौ चालै जूं तुकां ठसती संकड़ती चालै, जीं ताबै गीतरौ नाम अहिबंध छै । गीत ग्रड़बड़ाट पढ्यौ जावै, जीं ताबै नांमरौ यो लछण लख्यौ छै । अथ गीत ग्रहिबंध उदाहरण गीत राम नांम रसा रे, जाप संभ जसा रे । बोल तू म बिसारे, सेस भ्रात सही रे, पहारें कौड़ पाप ॥ कंज जात कही रे । दैत थाट दही रे, चहीरै बांण चाप ॥ ते संत तराया, गाथ बेदस गाया । लेख हाथ लगाया, दळां संख दाट ॥ तार बांम रखीते, सू चंदर सखीते । पाळ दीन पखीते, कळसां सत्र काट ॥ कोसकेस कंजारां, लीध वंस लजारां । हां दैत हजारां, धजारां बद धार ॥ ग्राह गोह गयंदां, देख ब्याध मधां । पेख ग्रीध पुलिंदां, पयोध नध पार ॥ आच साह अनेकां, कीध वार वसेकां । मांग राख वमेकां, करे के संत कांम ॥ हेळ पाप हताजे, जमंवार जीताजे । माह ऊंच मताजे, Jain Education International २११. जूं-जैसे । संकड़तौ-संकुचित होता हुआ । २१२. जाप जप कर । संभ (शम्भु) - महादेव। जसा-जैसा । म मत नहीं । बिसारेभूलना। पहारै-मिटाता है । सेस - लक्ष्मण । कंज जात - ब्रह्मा । दैत दैत्य थाटबांम-स्त्री । रखी - ऋषि । दल, समूह । दही रे - नाश किया। गाथ-कथा । सूर-सूर्य । चंद-चंद्रमा । सखी ते साक्षी दी। वाला । हांण-हानि । धजांरां-ध्वजा, ऊंचा । पाळ - पालक । पखी ते पक्ष करने गोह-गुह नामक निषादराज । यंदा - गज, हाथी । पुलिंदां एक प्राचीन पिछड़ी जाति । पयोध ( पयोधि ) - समुद्र | ॥२१२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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