SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 301
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७६ | रघुवरजसप्रकास अथ गीत ग्ररट मात्रा छंद लछण हौ धुर ठार ग्यारह दुती, सोळ व्रती चव ग्यार । सोळ ग्यार कम अंत लघु, अरट गीत उचार ॥ २१३ अरथ रट गीत सांणोर गीत छै पण सात सांणोर गीतांसूं भिन्न छै । दूजी चौथी तुक ग्यारै मात्रा, यौ भेद छे जींसूं जुदो कही दिखायौ छै । पै'ली तुक मात्रा ग्रठारै होय । दूजी तुक मात्रा ग्यारै होय । तीजी तुक मात्रा सोळ होय । चौथी तुक मात्रा ग्यारै होय । पछे सोळं ग्यारै ईं क्रमसूं पाछली तीन ही दूहां मात्रा होय । दूजी चौथी तुकरे तुकांत लघु होय, जीं गीतनै प्रस्ट नांम सांणोर कहीजै । कोई ईनै उमंख नांम गीत पिण कहै छै । त्राटको पण योही कहीजै, जींसूं त्राटको पण द नहीं को छै । अथ गीत अरट सांणोर उदाहरण गीत धन राघव हाथ अभंग धुरंधर, आथवरीस संक । दीघ भभीखण आस्रय देख कर, लीघ बिना दत लंक ॥ बाळ महाबळ घायक भूबळ, सारंग सायक संठ । भ्रात कहेस किकंधपुरी भल, कीध नरेस सुकंठ ॥ संत अनाथ 'दस सायक, धू पहळाद उधार | कांम उबारण प्राय सकारण, बारण तारण बार ॥ २१३. ग्यार-ग्यारह । दुती-दूसरी । सोळ - सोलह । ती (तृतीय) - तीसरी । चव- चौथी, चतुर्थ | पण - परन्तु । यौ-यह । जुदौ- पृथक, अलग । पर्छ - पश्चात | पाछलीपीछेकी । पिण-भी । पण भी । योहो-यही । नोट -- रघुनाथरूपकमें जो त्राटका गीत है वह गीत इस गीतसे भिन्न है । Jain Education International २१४. प्राथवरीस रुपयोंका दान देने वाला । दीध दिया। भभीषण-विभीषरण । लोधलिया, ली। दत दान। बाळ-बालि वानर । धायक - संहारक । सारंग - धनुष । सायक-तीर, बाण । संठ - मजबूत, दृढ़, जबरदस्त । किकंधपुरी - किष्किंधापुरी | भलठीक । कीध किया। नरेश राजा । सुकंठ-सुग्रीव । धू -भक्त ध्रुव । पहलादभक्त प्रह्लाद | बारण- गज । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy