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________________ रघुवरजसप्रकास [ २७७ कोट गयंद सतौल निधे कर, तोलण हेक तराज । पात 'किसन' अडोल रघुपत, बोल गरीबनवाज ॥ २१४ अथ गीत अठताळौ लछण दूही ले धुरसं तुक सोळ लग, चवद चवद मत चीत । अंत गुरु जस नाम अख, गण अठताळौ गीत ॥ २१५ प्ररथ जिण गीतरै पै'ली तुकसू लगाय नै च्यार ही दुहारी सोळं ही तुकांमें चवदैचवदै प्रत तुक मात्रा होय । अंत गुरु होय। सावझड़ी होय, जिण गीतनै अठताळौ कहीजै। अथ गीत अठताळौ सावझड़ी उदाहरण गीत अंग.धार आरख ऊजळा, करतार चित चढती कळा । विसतार जस चहूंवैवळा, साधार सेवग सांवळा ॥ सिर-जोर खग दत संजणा, पह रोर आंमय पंजणा । भड़ जुध असंतां भंजणा, रघुराज संतां रंजणा ॥ विपळ सत सघण नवीनरा, अत गाय दुज आधीनरा । भुज दहण खळ जस भीनरा, दिल महण बंधव दीनरा ॥ मह सीत वर महराज रे, लख जनां राखण लाज रे । किव किसन' वसै सकाज रे, रघु चरण सरणे राज रे ॥ २१६ २१४. तराज-समान, तुल्य । २१५. सोळ-सोलह । लग-तक । चवद-चौदह । मत-मात्रा। चीत-विचार कर। प्रख कह। २१६. पारख-चिन्ह, लक्षण । चहूंवैवळा-चारों ओर । साधार-रक्षक । रोर-निर्धनता। प्रांमय-रोग । पंजणा-मिटाने वाला। भंजणा-नाश करने वाला। रंजणा-प्रसन्न करने वाला! दुज (द्विज)-ब्राह्मण । महण (महार्णव)-सागर । सीत-सीता। लेखदेवता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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