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रघुवरजसप्रकास खळहळां खत चळवळां खापर वीसहथ भर विळकुळी । मह वळां चव रघुनाथ अमलां मंड सुसबद मंडळी । संत सधारिया रे जुध रिम जारिया भुज बद भारिया रे ,
अवन उचारिया ॥ ऊचरै अवनी विरद अहनिस करण सिध सुरकाजरा । दस माथ दुसह सिंघार दारुण सूर कुळ सिरताजरा । कर तेण गजगत किसन कवि कह लखां जन रख लाजरा । साधार संत अपार स्रीवर रांम सुसबद राजरा ॥२६६
२६६. चळवळां-रक्त, खून । खापर-खप्पर । वीसहथ-देवी, दुर्गा, रणचंडी। विळकुळी
मस्त हुई,प्रसन्न हुई। सुसबद-यश, कीर्ति । सधारिया-रक्षा की। रिम-शत्रु । जारियासंहार किया। अवन-पृथ्वी, अवनी। अहनिस-रात-दिन। यसमाथ-रावण । दुसह-भयंकर, जबरदस्त । सिंघार-संहार कर । सूर कुळ-सूर्य वंश । सिरताजराश्रेष्ठका शिरोमणिका। राजरा-श्रीमानके, आपके ।
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