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________________ रघुवरजसप्रकास अथ निसांणी छंद वरणण अथ निसांणी लछण दूहौ छै नीसांगी मांझक तुक अरथ निसांणी छंदरै प्रेक तुक प्रत मात्रा तेवीस प्रावै । इण लेखे तौ निसांणी मात्रा छंद छै नै क तुकरा विभाग तथा विस्रांम दोय छै । क पहलौवित्रांम तौ मात्रा तेरैं ऊपर होवै । दूजौ विस्रांम मात्रा दस पर होवै यौ लछण है । पै'ली मात्रा असम चरण छंद कह्या जठे छंद निस्रणिका कह्यौ, सोई निसांणी छंद जांणणौ । जिके च्यार प्रकाररा छं सौ फेर कहां छां । दूहा रे नी सांगी छंदरा, पढ़िया तिण लछण निरतिकौ, वर १. मुकांम - विश्राम | छंदरै, मत तेवीस मुकांम | दस दस, वदै दोय विसरांम ॥ १ Jain Education International [ ३२५ दु लघु तुकंत अख, बीजी गुरु लघु अंत | अंत तीसरी लघु गुरु, चौथी बि गुरु तुकंत ॥ ३ अरथ निसांणी छंद एक तुक प्रत मात्रा तेवीस होवै । जिणरा च्यार प्रकार । करै तौ तुरंत दोय लघु प्रखर होवे । दूजीरे तुकंत बाद गुरु अंत लघु हो । तीजी तुकंत प्रद लघु अंत गुरु होवै । चौथीरं तुकंत दोय गुरु करणगण होवे । च्यार प्रकाररी निसांणी छै । अथ प्रथम लघु तुकंत गरभितनांमा निसांनी जांगड़ी उदाहरण निसांरगी गह भर राघव तारिया, दरियाव विच गेंवर । किया खाध जटायका, निज हत्थ नरेसर || यौ - यह । जठे - जहां पर । च्यार प्रकार | सुकव विचार || २ मांझ-मध्य | दस - तेरह । वदे - कहते हैं । विसरांम- विश्राम | २. तिण- उस । ३. ख- कह । करण-गण-दो दीर्घ मात्राका नाम ऽऽ । ४. गह - गर्व । तारिया - उद्धार किये । दरियाव - समुद्र, सागर । विच-बीच, मध्य । गेंवर - हाथी । त्राध - श्राद्ध । जटायका- जटायुके । हत्थ - हाथ । नरेसर - नरेश्वर, राजा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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