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________________ २९४ ] रघुवरजसप्रकास अध पूरब जिम उतर अध, समझौ कवि सुविचार । क्रीत जेण बिच रांम कह, दाख गीत मंदार ॥ २५० अरथ पै'ली तुक मात्रा सोळे । बीजी तुक मात्रा सोळ । तीजी तुक मात्रा अठारै । चौथी तुक मात्रा तेरै होय । पैली बीजी तुक मिळे ज्यांरै गुरंत होय । पूरबारध उतरारध समान होय । पांचमी तुक मात्रा सोळे । छठी तुक मात्रा सोळे । सातमी तुक मात्रा अठारै और आठमी तुक मात्रा तेरै होय । अाठमीके रगणंत होय सौ मंदार नाम गीत कहीजै । अथ गीत मंदार उदाहरण गीत पण-राखण दास गदापांणी, मझ सौ कथ जाहर भूमांणी । अपखी प्रहळाद जिसा आतुर, संग्रहिया निज हाथसूं ॥ जे जुध हरणकुसनं जरियौ, धड़ नाहर मानवचौं धरियौ । जिण कारण देव दितेस दुजेसर, न्याय नमै रघुनाथरौँ । पित मात दसा तजया लंकन , बित जे चित हूं धू बाळकनें । बन जाय करे तप हेत विसंभर, अंक पया दळ ऊपरी ॥ घण साधै जोग सधीर घणे, सुर राजा कांपैं बात सुणै । निरधार अधार पधार नरायण, भूप कियौ द्रढ भूपरी ॥ दुरवासा डारण स्राप दियौ, लखजे अंबरीख उबार लियौं । बिच पेट परीछत मीच बचायर, थेट हरी जन थापिया ।। २५१. गदापाणी-विष्णु । भूमांणी-संसार, भूमंडल। अपनी-वह जिसका कोई पक्ष न करता हो । संग्रहिया-अपनाया, रक्षा की। जे-जिसने । हरणकुसनूं-हिरण्यकशिपुको । जरियौ-संहार किया। धड़-शरीर । नाहर-सिंह । मानवचौ-मनुष्यका । धरियोधारण किया। दितेस-दैत्य, दैत्येश । दुजेसर-द्विजेश्वर, महर्षि । विसंभर-ईश्वर । पया-पैर । दुरवासा-एक ऋषिका नाम। डारण-जबरदस्त। नाप-शाप । परीछतपरीक्षित । मीच-मृत्यु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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