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________________ रघुवरजसप्रकास [ २६५ बळमीक पुळिंद रिखी बागौ, कीधौ गुरु सुकनाधिप कागौ । भख अंठित बोर करां कर भीलण, प्रेम घणां पद अप्पिया ॥ निरधारां अोठम घणनांमी, भुज दीन सीहाय ब्रद भांमी । नह विसार संभार ग्रहोनिस, जैनूं आलूं जांममें ॥ दिल ऊजळ ठाकर दासरथी, कथजे गुण आकर वेद कथी। कर तूं अभिलाख रदा 'किसना' किव, राख सदा चितरांममें ॥२५१ अथ गीत झडलुपत सावझड़ौ लछण सावझड़ी रमणी वसंत, तुक धुर बी मिळ बेद । मोहरौ तुक तीजी अमिळ, सौ झड़लुपत सुभेद ॥ २५२ प्ररथ गीतांरा प्रकरणमें पै'ली तीन सावझड़ा कहया । अक वसंतरमणी, बीजौ जयवंत नै तीजौ मुणाळ, ज्यांमें पै'लौ वसंतरमणी नाम सावझड़ौ, जिणरै पैली तुक मात्रा अठारै होय नै और सारा ही गीतरी सारो ही तुकांमें सोळे सोळ मात्रा होय। तुकंत भगण होय सौ तौ वसंतरमणी सावझड़ौ, जिणरी च्यार ही तुकां मिळे नै झड़लुपतरी पैली तुक दूजी तुक चौथी तुक मोहरा मिळे नै तीजी तुक मोहरौ मिळे नहीं, जिणनं झड़लुपत कहीजै तथा कोई कवि यणने त्रिमेळ पालवणी पण कहै छै सौ पण सत्य छै। अथ गीत त्रिमेळ पालवणी तथा झड़लुपत सावझडौ उदाहरण दत किरमर जोड़ नको विरदायक । घण दळ रोड़ कौड़ खळ घायक ॥ २५१. बळमीक-बाल्मीकि ऋषि। पुळिद-एक प्राचीन कालकी पिछड़ी जाति । रिखी-ऋषि । कीधौ-किया। सुकनाधिप-गरुड़। कागौ-काकभुशुण्डि । अंठित-ऊच्छिष्ठ । अोठमशरण, सहारा। घणनामी-ईश्वर । ब्रद-विरुद। भामी-बलैया। जैन-जिसका। पाठं जांममें-अष्ठ याममें । दासरथी-श्रीरामचंद्र भगवान । २५२. धुर-प्रथम। बी-द्वितीय । बेद-चतुर्थ, चौथी। मोहरौ-तुकबंदी। अमिळ-नहीं मिलने वाली। ज्यांमें-जिनमें । यण-इस । पण-भी। २५३. दत-दान । किरमर-तलवार । जोड़-समान । नको-कोई नहीं। विरदायक-विरुद धारी, यशस्वी। घण-बहुत । दळ-सेना, फौज। रोड़-रोक कर। खळ-शत्रु । घायक-संहार करने वाला। गीत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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