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रघुवरजसप्रकास अघ तम दळद तोड़ दुत आसत । निज कुळ मौड़ जानकी नायक ॥ जुध आचार भार भुज जोपत । रिमहर मार धजा जय रोपत ॥ वदै तमाम वेद मनीवर ।
औ रवि वंस राम रवि ओपत ॥ नूप खग दांन लियां मुख नूर ज । प्रसणां भांन खित्रीवट पूरज ॥ बळबळ प्रथी सुजस सद बोलत । सूरज तड़ दासरथी सूरज ॥ सदन सुकंठ भभीखण सामंत । निरख कंठदस भांज अनामत ॥ रे कुळभांण भांण नूप राघव । कौड़'क भांण लियां मुख क्रांमत ॥ २५३
अथ गीत त्रिपंखौ लछण
धुर बी तुक मत सोळ धर, ती तुक बीस मताय ।
गळ अनियम मिळबौ, श्रेक त्रिपंखौ गाय ॥ २५४ २५३. अघ-पाप । तम-अंधेरा। दळद-दारिद्रय, कंगाली। दुत-द्युति । आसत-शक्ति ।
प्राचार-दान । जोपत-जोशमें होता है । रिमहर-शत्र । रोपत-रोपता है । तमांम-सब । रविवंस-सूर्य वंश। रवि-सूर्य । प्रोपत-शोभा देता है। नप-राजा। नूर-कांति, दीप्ति । ज-ही। प्रसणां-शत्रयों। भान-नाश कर। खित्रीवटक्षत्रियत्व। पूरज-पूर्ण । बळ बळ-चारों ओर। सद-शब्द। बोलत-बोलता है। तड़-दल । दासरथी-श्री रामचन्द्र । सदन-भवन । सुकंठ-सुग्रीव । भभोखणविभीषण । सामंत-योद्धा। निरख-देख, देख कर। कंठदस-रावण । भांज-नाश कर । अनामत-जो नहीं झुकता या नमता था। कुळ भाण-सूर्य वंश । भांण-सूर्य ।
कौड़' क-करोड़ों। क्रांमत-कांति, दीप्ति । २५४. बी-दूसरी । मत-मात्रा । तो-तीसरी। मताय-मात्रा । गळ-अनुप्रास, तुकबंदी।
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