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रघुवरजसप्रकास
। २६३ अथ गीत चौटियौ उदाहरण
गीत जांमी अघ भान सुरसरी जेथी, ध्यांन मुनीसां धायौ । वरणे वेद यसा नग राघव, आं सरणे हूं आयौ ।
__ केसव रावळौ निज दास कहायो । त्रिभुवण मांझ नहीं त्यां तोलै, ओळे सुतअरब्यंदौ । म्है किव 'किसन' हुलासे चितमें, आसे लियौ अमंदौ ।
बर-सी राजरै चोटीकट बंदौ ॥ रज परसण उदमाद करै रिख, मरै हूंस मघवांणौ । क्रत दत कौट कियां हूं यधकौ, हरि नग ओट रहाणौ ।
कुळमें धन्य हूं किंकर कहांणौ ॥ भण चौरासी घेर उदध-भव, नरपत फेर नह नाचूं । कौसळनंद अडग 'किसनौ' कह, जुग जुग याही जाचूं ।
राघव रावळा चरणां नित राचूं ॥२४८ अथ गीत मंदार लछण
दूहा तुक धुर बी सोळह मता, मोहरा मेळ गुरंत ।
ती अठार चौथी त्रिदस, तेरै कह रगणंत ॥ २४६ २४८. जामी-पिता । अघ-पाप । सुरसरी-गंगा नदी। जेथी-जहां । धायौ-स्मरण
किया, भजन किया । यसा-ऐसा। नग-चरग। प्रां-उन। हं-मैं। रावळोश्रीमानका, आपका। त्रिमुवण-तीन लोक । मांझ-में, मध्य। तोलै-समान । सुत अरव्यंदौ-ब्रह्मा । बर-सी-सीतावर, श्रीरामचंद्र भगवान । राजर-अापके, श्रीमानके । बंदौ-सेवक, अनुचर। रज-धूलि । परसण-स्पर्शन । उदमाद-इच्छा। रिखऋषि । हूंस-अभिलाषा ! मघवांणौ-इंद्र । ऋत-कार्य, काम । दत-दान । यधकोअधिक। प्रोट-पाड़, शरण । रहाणौ-रह गया हूँ। हं-मैं। किंकर-दास, भक्त।
कहांणी-कहा गया । रावळा-अापके। २४६. धुर-प्रथम । बी-दूसरी। मता-मात्रा। ज्यांरै-जिनके। गुरंत-जिस शब्दके
अंतमें गुरु वर्ण हो। रगणंत-जिसके अंतमें रगण हो।
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