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रघुवरजसप्रकास
प्ररथ
बीजा भमरगुंजाररै पै'ली तुक मात्रा चवदै । बीजी तुक मात्रा चवदै । तीजी तुक मात्रा सोळे । चौथी तुक मात्रा नव । यूंही उतरारधरी च्यार तुकां होय । पै'ली दूजीरा मोहरा मिळे । अंत गुरु होय । तीजी चौथी भेळी पढ़ी जाय । चौथी अाठमीरा मोहरा मिळे । अंत गुरु होय । पांचमी छठीरा मोहरा मिळे । गुरु अंत होय । पूरबारध उतरारध समान मात्रा होय । यूं च्यार ही दूहा होय सौ बीजौ भंमरगुंजार गीत कहावै।
अथ गीत बीजौ भंमरगुंजार उदाहरण
गीत सुभ देह नीरद सुंदर, साधार सेवग स्रीवरं । रघुनाथ नाथ अनाथ रहे, हेल अध हरणं ॥ धर सुकर सायक धानुखं, लड़ समर रहचण लखं। दुज राज गरब विभंज दस्सत, सरब जग सरणं ॥ २४६
अथ गीत चौटियौ लछण
दूही प्रगट जांगड़ा गीत पर, अधिक मत्त उगणीस । अंत दु गुरु तुक आणजे, कवि चौटियौ कहीस ॥ २४७
प्ररथ
वैलियौ, सूहणौ, खुड़द, जांगड़ौ, यां च्यार ही गीतां छोटा सांणोरां मेहलौ । जांगड़ौ गीत पै'ली तुक मात्रा अठारै । बीजी तुक मात्रा बारै । तीजी तुक मात्रा सोळ । चौथी तुक मात्रा बारै होय । दो गुरु तुकत होय, पछै सोळ बार ई क्रम होय, जी जांगड़ा गीतरा दूहारै पांचमी तुक एक मात्रा उगणीसरो अधिक होय । दो गुरु तुकंत होय । इण प्रकार सू च्यार ही दूहा होय, जिणनै चौटियौ गीत कहीजै। २४६. नीरद-बादल । साधार-सहायक, रक्षक । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । सायक-तीर । धांनुखं
धनुष । २४७. मत-मात्रा। उगणीस-उन्नीस । कहीस-कहेगा। बीजी-द्वितीय, दूसरी। बार
बारह। ई-इस ।
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