________________
[ १३५
रघुवरजसप्रकास है जंग वागां दस-माथ हता। माहेस वाछळ य सुकंठ मीता ॥ ८६
जगण तगण जगण करण, छंदस वज्रउपेंद। वज्र इंद ऊपयंद पद, मिळ उपजाती छंद ॥ ८७
उपेंद्रवज्रा (ज.त.ज.ग.ग.) अरेस जेतार जुधां अथाहं । बिसाळ ऊरंसु अजांनबाहं ।। धनेस देवेस दुजेस ध्यावै । गुणीस राघौ नित क्यं न गावै ॥ ८८ .
छंद उपजात स्त्री जांनुकीनाथ सदा सराहौं । चिंतस बीजौ भजवा न चाहौ ॥
८६. जंगवागां-युद्ध होने पर। दस-माथ-रावण। हंता-मारने वाला। माहेस-शिव ।
वाछळ्य-वात्सल्य । सुकठ-सग्रीव। मीता-मित्र । ८७. वज्रउपेंद-उपेन्द्रवज्रा नामक छंद । ऊपयंद-उपेन्द्रवज्रा छंद। उपजाती (उपजाति)-इन्द्र
वज्रा और उपेन्द्रवज्राके योगसे बनने वाला छंद कहलाता है। इस प्रकारके छंद संस्कृत साहित्यमें १४ हैं जो इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्राके योगसे ही बनते हैं यथा कीति, वाणी माला, शाला, हंसी, माया, जाया, बाला, आर्द्रा, भद्रा, प्रेमा, रामा, ऋद्धि
और सिद्धि । नोट-कहीं-कहीं इंद्रवंश और वंशस्थ तथा कहीं-कहीं सार्दूल विक्रीड़ित और स्रग्धरा छंदके
योगसे बनने वाले छंदोंकी संज्ञा भी उपजाति मानी गई । ८८. अरेस (अरीश)-महाशत्रु । जेतार-जीतने वाला । अथाहं-अपार । ऊरंसु-उरसे, हृदयसे,
वक्षस्थलसे । अजानबाह-पाजानबाहु । धनेस-कुबेर । देवेस-इन्द्र। दुजेस (द्विजेश)बड़े-बड़े ऋषि, नारद, व्यासादि। गुणीस (गुणीश)-महाकवि । राघौ-श्रीरामचंद्र ।
क्यं-क्यों ? न-नहीं । ८६. उपजात-उपजाति । सदा-नित्य । सराहौ-कीर्तन करो, यशगान करो। चितस-चितसे।
बीजौ-दूसरा । भजवा-भजन करनेको। चाहौ-इच्छाकरो।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org