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रघुवरजसप्रकास
छंद सैनिका (ग.ल.ग.ल ग.ल ग.ल.ग.ल.ग. अथवा र.ज.र.ल.ग)
माथ पंच दूण जुद्ध मारणं । धांनुखं सरेण पांण धारणं ।। बार बार रांम क्रीत बोल रे। ताहरौ वडौ कवेस तौल रे ॥ ८३
दहौ मालतिका ग्यारह गुरु, बि तगण ज करण जाण । छंद इंद्र वज्रा छजै, वड कवि राम वखांण ॥ ८४
___ छंद मालतिका (११ ग. अथवा म.म.म.ग. ग.) राघौ रूड़ौ स्री सीता स्वामी राजै । भारांथां लाखां दैतां थौका भांजै ॥ जैनं जीहा रातौ-दीहा जी जपौ। कांतो थे कीनासाहू ता ही कंपौ ॥ ८५
छंद इंद्र वज्र ( त.त.ज.ग.ग.) गोपाळ गोव्यंद खगेस-गांमी। नागेस सज्या क्रत सैन नांमी ॥
८३. माथ (मस्तक)-शीश। दूण-दुगना। मारणं-मारने वाला। धांनुखं-धनुष । सरेण
बाण, बासे । पांण (पाणि)-हाथ । धारणं-धारण करने वाला। क्रीत (कीति)
यश। ताहरौ-तेरा। कवेस (कवीश)-महाकवि । तौल-मान, प्रतिष्ठा । ८४. बि (द्वे)-दो। ज-जगण । करण-दो गुरु मात्रा । छजै-शोभा देता है। बखांण
वर्णन कर। ८५. रूडो-बढ़िया। राजै-शोभा देता है। भाराथां-युद्धों। थौका-समूह। भांजै-नाश
करता है, तोड़ता है। जैन-जिसको। जीहा-जीभ । रातो-दोहा-रातदिन । जीजीव, प्रारण। जंपौ-याद करो, स्मरण करो। कांतौ-पति। कीनासहंता-यमराजसे ।
कंपौ-कम्पायमान है। ८६. गोव्यंद-गोविंद । खगेस-गांमी-गरुड पर सवारी करने वाला, गरुड़के वाहन से गमन करने
वाला । नागस-शेषनाग । सज्या-शय्या। क्रत-करने वाला। सैन-शयन । नामीनाम वाला।
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