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________________ रघुवरजसप्रकास [ १३३ दूही दोय करण फिर रगण दौ, अंत एक गुरु आंण । सुणियौ खग कहियौ सरप, छंद सालिनी जाण ॥ ७६ छंद सालिनी ( ४ ग.र.र.ग. अथवा म.त.त.ग.ग.) गावै राघौ सौभणौ पात गाढ़ौ । आवै वाणी यू 'किसन्नेस' आदौ । ते भूला राघौ, विगतौ भवि त्यांरौ। जाणैसी पीछे वडौ भाग ज्यांरौ ॥ ८० दूहौ दौ दुजबर अंतह सगण, मदनक छंद मुणंत । गुरु लघु क्रम ग्यारह वरण, सौ सेनका सुणंत ॥ ८१ छंद मदनक ( ८ ल.स. अथवा न.न.न.ल.ग.) हरण कसट जन हर है। विमळ बदन रघुबर है। सरब सगुण सह सरसै। दनुज दहण भुज दरसै ॥ ८२ ७६. करण-दो दीर्घ मात्राका नाम 55। प्रांण-ला कर । खग-गरुड़ । सरप-शेषनाग । ८०. राघौ-श्री रामचंद्र । सोभणौ-शोभा देने वाला। अथवा-सो = वह, भणौ = कहो। पात (पात्र)-कवि । गाढ़ौ-दृढ, गंभीर । पाखै-कहता है। प्राढ़ौ-पढ़ा गोत्रका चारण । ते-वे। विगतौ-बरबाद हा, व्यर्थ गया। भवि (भव)-जन्म या संसार । त्यांरौउनका। जाणसी-जानेंगे। पीछे-पश्चात् । वडौ-महान । भाग-भाग्य । ज्यांरौ जिनका। ८१. दुजबर-चार लघु मात्रा ।।।। मुणंत-कहा जाता है । सुणंत-सुना जाता है । ८२. बिमळ-पवित्र । बदन-मुख या शरीर । दनुज-राक्षस । दहण-नाश करनेको। दरस दिखाई देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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