________________
रघुवरजसप्रकास
भूतेस चाप छिनमेक चढाय भंज्यौ I राजाधिराज सिय मानस कंज रंज्यौ ॥ ११५
छंद चक्र
(ग.,
., १२ ल., ग. अथवा भ.न.न.न.ल.ग.) ७,७
राम भजन विण अहळ जनम रे 1 नांम समर पय सिर नित नम रे 11 मांस असत तन चरमसु मळ रे । स्त्रीवर रट रट रसण सफळ रे ।। ११६
अथ पनरह अखर छंद वरणण, जात प्रतिसक्विरी दू
गुरु लघु क्रम आखिर पनर, सौ चामर सुखकंद ।
बि नगण २ करण १ बि रगण २ गुरु छजै सालिनी छंद ॥ ११७
[ १४३
छंद चांमर (र. ज. र. ज. र. )
कौड़ दैत भंज संज, पांण चाप सायकं ।
Jain Education International
नागराज भ्रात बंस, मीत सीतनायकं ॥ देवराट क्रीत खाट, नाट बोल ना दखं । रे नरेस राघवेस, गावजै भजै रिखं ॥ ११८
समर - स्मरण कर ।
११५. भूतेस - महादेव, शिव । चाप - धनुष । छिनमेक- एक क्षण । भंज्यौ-तोड़ा । सियसीता । मानस ( मानस ) - चित्त, हृदय, मन । कंज - कमल । रंज्यौ - प्रसन्न किया । ११६. हळ (अफल ) - निष्फल, व्यर्थ | सदैव । संत (स्थि) - हड्डी । चरमसु- चमड़ी | (श्रीवर) - विष्णु, श्रीरामचंद्र । रसण (रसना) - जिह्वा, जीभ । ११७. पनरह प्रखर छंद - पंचदशाक्षर वृत्ति । पन्द्रह वर्णोंके वृत्तोंकी संज्ञा प्रतिशक्वरी कही जाती है जिसके अंतर्गत कुल वृत्त प्रस्तार भेदसे ३२७६८ तक हो सकते हैं ।
पय-चररंण । नित- नित्य, मळ - मैल, विष्टा । स्त्रीवर
११८. कौड़ (कोटि ) - करोड़ । दैत ( दैत्य ) - प्रसुर । भंज - नाश कर, संहार कर । संजअस्त्र शस्त्र, उपकरण । चाप-धनुष । सायकं - बाण | नागराज - शेषनाग, लक्ष्मण । भ्रात - भाई ! मीत (मित्र) - सूर्य । सीतनायकं - सीतापति, श्रीरामचंद्र | देवराटइन्द्र । क्रीत - यश | खाट प्राप्त कर । नाट-नहीं । बोल वचन । ना नहीं | दर्दकहे कहते हैं ! नरेस ( नरेश ) - यहां यह शब्द नरके लिये प्रयोग हुआ है, राजा । राघवेस ( राघवेश ) - श्रीरामचंद्र । भजै-- भजते हैं। रिखं ऋषि ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org