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रघुवरजसप्रकास छंद सालिनी (न-न.ग.र.र.ग.) महण मथण राघौ वाग संसार माळी । तिपुर घड़ण भंजै वाजन्तां हेक ताळी ॥ अहनिस भज तैनं आव संसार ओछी । छ-दरस यम आखे, जे बिना सब्ब छोछी ॥ ११६
सगण पंच भमरावळी, स ज दौ भ रह विवेक । सुकळ हंस चवदह लघू, रभस गुरु पद एक ॥ १२०
छंद भ्रमरावली (स.स.स.स.स.) कर साझत रांम सुचाप सरं कळहं । दुगमं खळ सीस-दुपंच जिसास दहं । रघुनायक धारत मौज सुचित्त रूड़ी। गढ लंक जिसा दत आपत हेक घड़ी ॥ १२१
छंद कलहंस (स.ज.ज.भ.र.) रघुनाथ भंज दुपंच-माथ अभंग रे। जयवांन भूप अमांन आसुर जंग रे॥
११६. महण (महार्णव)-सागर, समुद्र । मथण-मंथन करने वाला। तिपुर-त्रिपुर, त्रिलोक ।
घड़ण-रचना, घड़ना, घड़ता है । भंजै-नाश कर देता है। बाजतां-बजने पर। हेकएक । प्रहनिस-रात-दिन। तैनूं-उसको। आव-पायु । पोछी-कम। छ-दरस (षड़दर्शन)-न्याय मीमांसादि हिंदुओंके षड़दर्शन, या छ शास्त्र । यम-ऐसे । पाखै
कहते हैं। जे-जिस । सब्ब-सर्व, सब । छोछी-व्यर्थ, निष्फल । १२०. स-सगण । ज-जगण । भ-भगण । रह-रगण । १२१. कर-हाथ । साझत-धारण करते हैं। सुचाप-सुंदर धनुष । सरं-बाण । कळहं
युद्ध । दुगर्म-जबरदस्त, महान । खळ-असुर । सीस-दुपंच-रावण । जिसास-जैसे । दह-नाश, नाश करने वाला। सुचित्त-उदार चित्त । रूड़ी-बढ़िया, श्रेष्ठ । जिसा
जैसा । दत-दान । प्रापत-देते हैं, दे दिया। हेक-एक । १२२. भंज-नाश करने वाला। दुपंच-माथ-रावरग। अभंग-न भागने वाला । अमान-अपार ।
प्रासुर (असुर)-राक्षस । जंग-युद्ध ।
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