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रघुवरजसप्रकास
[ १४५ जळधार तार गिरंद बंधण पाज रे । लिछमीस दास अनाथ राखण लाज रे॥ मछराळ देव दयाळ ग्रीवसु म्यंत रे । 'किसनेस' गाव सचाव सीत-कंत रे ॥ १२२
छंद रभस (१४ ल.ग. अथवा न.न.न.स.) ६६ रिवकुळ मुकट अघट रघुबर है । सुरतर सर भर जिकण सुकर है ॥ हरा सकळ अघ करण अमर है। चव जस किसन' चवत थिर चर है ॥ १२३ अथ सोळ अखिर छंद वरणण, जात अस्टि
दूही भ ज स न रह पनरह अखिर, निसपालिका सु गाव । लघु गुरु क्रम सोळह अखिर, सौ नाराज सुभाव ॥ १२४
छंद निसपालिका (भ.ज.स.न.र.) रांम सरखा नरप कोय यळ ना रजै ।
छात्रपत रांम सम रांम करगां छजै ॥ १२२. लिछमीस (लक्ष्मीश)-लक्ष्मीपति, विष्णु, श्रीरामचंद्र। दास-भक्त । मछराळ (मत्स्या
वतार)-महान, जबरदस्त । ग्रीवसु-सुग्रीव । म्यंत (मित्र)-मित्र । सचाव
उत्साहपूर्वक, उमंगपूर्वक । सीत-कंत (सीताकांत)-सीतापति, श्रीरामचंद्र भगवान । १२३. रिवकुल (रविकुल)-सूर्यवंश या सूर्यवंशी। अघट-जि सके समान दूसरा न हो, अद्वितीय ।
सुरतर-कल्पवृक्ष । सर-भर-समान । जिकण-जिसका । सुकर-श्रेष्ठ हाथ । सकळ
सब । अघ-पाप । चव-कह । चवत-कहते हैं। थिर-स्थावर, अटल । चर-जंगम । नोट-रभस छंदका दूसरा नाम शशिकला भी है। १२४. सोळे अखिर छंद-षोड़शाक्षरावृत्ति । अस्टि (अष्टि)-सोलह वर्णकी वर्ण-वृत्ति जिसके
कुल भेद ६५५३६ तक हो सकते हैं। १२५. सरखा (सदृश)-समान । नरप (नृप)-राजा। कोय-कोई । यळ-पृथ्वी। छात्रपत
(छत्रपति)-राजा। सम-समान । करगां-हाथ । छज-शोभा देता हैं ।
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