SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३८ ] रघुवरजसप्रकास कौटेक घळ काटणौ, थिर संत थांनक थाटणौ, सुज तेज कौटक सूररौ, सुरेस मूळ उपाटणौ । अभनिमौ सगर रोड़ || रज कौट इंद्र जहूररौ । निज समुख रजवट नूररौ, महराज रिव कुळ मोड़ || बांनैत भूपत बँकड़ा, घण भंज रिण असुरां घड़ा । सुजदास टाळण संकड़ा, लहरेक आपण लंक ॥ भूपाळ सिघ धन भूपती, रिझवार कीरत बडरती । अंग लियां पौरस आसती, अवधेस जुध अणसंक ॥ सुज भ्रात जेठी सेसरा, दइवांण वंस दनेसरा | हद कंज मधुप महेसरा, मन महण रूप समाथ ॥ हद भाळ सुसबद भळहळा, निज कदम समहर नहचला । साधार सेवग सांवाळ, नूपराज दसरथ नंद ॥ १३३ अथ गीत हंसावळौ सांणौर लछण दूहौ धुर अठार फिर पनर घर, सोळ पनर सरवेण । ल है अंत लघु, जपै वेलियौ जेण ॥ १३४ वंश | १३३. श्रघ - पाप | दळ-समूह । काटणौ-काटने वाला । श्रसुरेस - रावण | मूळ - जड़, उपाटणौ - मिटाने वाला । थिर-स्थिर । थानक स्थान । थाटणौ - शोभा बढ़ाने वाला, वैभव बढ़ाने वाला । अभनिमौ-वंशज । सगर - एक सूर्यवंशी राजाका नाम । श्ररोड़जबरदस्त । सुज-वह । कौटक - करोड़ । सूररौ -सूर्यका । रज-वैभव । जहूर ( जुहूर ) - प्रकाशन, प्रकट | रजवट - क्षत्रियत्व, शौर्य । नूर - क्रांति, दीप्ति, सुन्दरता । रिव-सूर्य । बांनैत वीर भूपत - भूपति राजा । बंकड़ा - बंकुरा | घण-बहुत अधिक। रिणयुद्ध प्रसुरां - राक्षसों घड़ा (घटा ) - सेना । दास-भक्त | टाळण - मिटानेको, दूर करने को । संकड़ा - संकुचित, संकट | आपण - देने वाला । लंक- लंका । सिघ-श्रेष्ठ । धन-धन्य | रिझवार - प्रसन्न होने वाला । बड - महान, बड़ी । रती-कांति, दीप्ति । प्रासती - महान, प्रबल । थणसंक- निडर, निर्भय । भ्रात-भाई । जेठी (जेष्ट ) - बड़ा ! सेसरा - लक्ष्मणका । दइवांण - महान, जबरदस्त । दनेसरा ( दिनेशका ) - सूर्यका । हदहृदय । कंज - कमल । मधुप-भौंरा । महेसरा - महादेवका । महण ( महार्णव) - समुद्र | समाथ - समर्थ । सुसबद - कीर्ति, यश कदम ( कदम ) - चरण । समहर युद्ध | साधाररक्षक, सहायक । सेवग भक्त | सांवळा - श्रीकृष्ण, श्रीराम । नंद - पुत्र | १३४. धुर-प्रथम । ठार - ग्रठा रह । पनर - पन रह । सोळ-सोलह | सरवेण - सबमें । Jain Education International * For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy