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________________ रघुवरजसप्रकास . [ २३७ अथ गीत दोढा लछण दूहा धुर बी ती चवदह धरौ, चौथी बार चवंत । पंच छठी सप्तम चवद, अठमी बार अखंत ॥ १३० पहली बीजी तीसरी, मेळ रगण पळ होय । मिळ चौथीसू आठमी, जै तुकांत लघु जोय ॥ १३१ पंचम छठी सातमी, मेळ रगण पय छेह । भाख रांम गुण किसन' भल, आखत दोढौं श्रेह ॥ १३२ दोढा गीतरै पै'ली दूजी तीजी तुक मात्रा चवदै होय । चौथी आठमी तुक मात्रा बारै होय । पांचमी छठी सातमी तुक मात्रा चवदै होय । पै'ली दूजी तीजी तुकां मिळ, अंत रगण होय । चौथी पाठमी तुक मिळं , अंत लघु होय । पांचमी छठी सातमी तुक मिळे , अंत रगण होय, जी गीतको नाम दोढी कहीजै । अथ गीत दोढा उदाहरण गीत भड़ असुर आहव भंजिया, गह कुंभ सरखा गंजिया । रघुराज संतां रंजिया, वडवार कीरत ब्यंद ॥ आजांनभुज बळ अंगरौ, जैतार दससिर जंगरौ । अख रूप कौट अनंगरौ, बिबुधेस नीत पय बंद ॥ १३०. धुर-प्रथम । बी-दूसरी। ती-तीसरी । चवदह-चौदह । बार-बारह । चवंत-कहते हैं। चवद-चौदह । प्रखंत-कहते हैं। १३१. पछ-बादमें, पश्चात । १३२. पय-चरण । छेह-अंत । भल-ठीक । पाखत-कहते हैं। ऐह-यह । चवंदै-चौदह । बार-बारह । जी-जिस । १३३. भड़-योद्धा । असुर-राक्षस । श्राहव-युद्ध। भंजिया-ध्वंश किये। गह-गंभीर, महान । कुंभ-रावणका भाई कुंभकर्ण। सरखा-समान । गंजिया-ध्वंश किये। रंजिया-प्रसंन्न किये अथवा प्रसन्न हुए। बार-समय । कीरत-कीर्ति । ब्यंद-बंदन । प्राजांनभुज-आजानबाह। जैतार-जीतने वाला, जीत कर उद्धार करने वाला। दससिर-रावण । प्रख-कह । कौट-करोड़ । अनंगरौ-कामदेवका । बिबुधेस-इन्द्र । पय-चरगा। बंद-बंदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003420
Book TitleRaghuvarjasa Prakasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages402
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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