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रघुवरजसप्रकास अथ गीत कैवार लछण
दूहौ धुर अठार बी नव धरौ, ती सोळह नव वेद । दु गुरु अंत चौथी दुती, भण कैवार सुभेद ॥ १२८
प्ररथ
पै'ली तुक मात्रा अठारै होवै । तुक दूजी मात्रा नव होवै। तुक तीजी मात्रा सोळे होवै । तुक चौथी मात्रा नव होवै । पछै सोळे नै नव ई क्रम होवै। दूजो चौथी तुकरै अंत दोय गुरु होवै, ती गीतरौ नाम कैवार कहीजै ।
अथ कैवार उदाहरण
गीत कीजै वारणे छिब काम कौटिक, दीन दुख दाघौ । साभाव सरण-सधार स्रीवर, राजरौ राघौ । धानंखधारी विरद धारण, तोय गिरतारी । राजवाळी नंद दसरथ, भरोसौ भारी ॥ भव चाप भंज जनक भूपत, राज पण रक्खै । सुज पूर खित्रवट वरी सीता, सूर सिस सक्खै ॥ रघुनाथ संत समाथ तारण, नाथ बोहौ नामी । दसमाथ भंज प्रचंड दाटक, भुजाडंड भांमी ॥ १२६
१२८. बि (द्वि)-दो, दूसरी । ती-तीसरी । तीं-उस । १२९. बारण- न्यौछावर । छिब-शोभा। कौटिक-करोड़ । दाघौ-दग्ध, जला हुअा। साभाव
स्वभाव । सरण-सधार-शरणमें पाए हएकी रक्षा करने वाला। स्रोवर (श्रीवर)विष्णु। राजरौ-श्रीमानका। राधौ-राघव, रामचन्द्र भगवान । तोय-पानी । गिरतारी-पर्वतोंको तैराने वाला । राजवाळी-श्रीमानका, आपका। नंद-पुत्र । भवमहादेव, शिव । चाप-धनुष । पूर-पूर्ण । खित्रवट-क्षत्रियत्व । सूर-सूर्य । सिस (शशि)-चन्द्रमा । सक्खै-साक्षी है। समाथ-समर्थ । बोहो-बहुनामी। दसमाथरावण । भंज-नाश कर। दाटक-जबरदस्त, शक्तिशाली। भुजाडंड-जबरदस्त । भांमी-बलैया, न्यौछावर ।
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